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कइराय-सयम्भूएव-किउ
पडमचरिउ [४३. तियालीसमो संधि] गृहएं असर किलिम्पुर ग र रिसावरि । सुग्गवहाँ विज-सुग्गीउ रणे तारा-कारणे अभिडिङ ।।
[] परिवक्तु जिणेवि सकियउ । बिद्दाणड माण-कलकियउ ॥६॥ f हियवएँ मूल ससिलपट ! माया-सुग्गी बलियउ ॥२॥ सुग्गीउ भमस्तु घण घणु । संपाइर खर-दूसणई रणु ॥३॥ बलु दिटक सयल सर-जज्जरिउ । तिल मेत खुरुप्पैहि कप्परिउ ॥४॥ कस्थइ सन्दण सय-खण्ड किय । फरथइ तुरा णिज्जीच थिय ॥५॥ कन्यषि लोहाविय हस्थि-हह । कन्या सउणे हि खजन्ति भई ॥६॥ सत्य हिण्णई धय-चिन्धाई । काथइ गन्ति कबधाई ॥७॥ कस्थ रहनुरय-गयासगई । हिपन्ति समरे सुपणासण HI
पत्ता सं तेहउ किकिन्धेसरण भय-भीसावणु दिटु रणु । उम्मेट्रे लपवण-गयवरण विखंसित कमल-वणु।।।
रणु मीसणु जं जें णियच्चियउ । खर-दूसण - परियणु पुन्छियउ ॥३॥ ' 'इमु का महन्तउ बरिउ । वल सयलु केण सर-जजरिड' ॥२॥
तं वयणु भुणे वि दुमिय-मणेण । बुबह खर-दूसण - परियणेण ॥३॥ 'कवि दसरहु तहाँ सुभ बेष्णि जण । वण-वासें पइट विसण्ण मण ॥ सोमिसि को वि चित्तण थिरु । से सम्बुकुमारहों खुद्धिड सिरु ॥५/