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पउमचरित
जय सत्र-महाभय-हय-दमण | जय जिण-रवि णाणम्वरनामण ॥८॥ जम दुक्किय कम्म-कुमुय-दहण। जय चड-गइ-स्यणि-तिमिर-महण ।।१।। अय इन्दिय-दुरम-दणु-दहण । जय जक्ख-महोरा-धुय-खलण ॥१०॥ जय केवल-किरणुजोय-कर। जय-भचिय-सचिन्दाणन्दयर ॥११॥ अब जय भुचणेक्क-चक्क-भमिय। अय-मोक्ख-महोहरें अस्थमय ॥१२॥
घत्ता मार्वे तिहि मि जहि पदण कविं जिणेसहाँ । पयहिण देषि तिवार पुणु चलियई वण-वासहीं ॥१३॥
[ 1] स्यणि माझे पथइ सहव । ताम णियविदउ परमु महाहबु ॥ १॥ कुछ विन्दइँ पुलय-चिसह. । मिहुण, वलइँ जेम अम्भिह है ॥२॥ 'वलु वलु' एकमेक कोकन्त। 'मरु मरु पहरु पहरु' जम्पन्तह् ॥३॥ सर हुकार साल मेन्लन्तहै। गरुभ-पहारह उरु उडन्त ि॥१६॥ खणे ओवडियई अहर इसन्सई। खणे किलिविण्डि हिण्डि रिसन्नई ।।५॥ खणें वहु वालालुनि करन्तई। खणे णिष्फन्दर सेउ फुसन्त ।।६।। तं पेक्खेपिणु सुरय-महाहा। सीयहें अपणु पजोयइ राहउ ॥७॥ पुणु वि हसम्तइँ केलि करन्तहैं। चलियाँ हट्ट-मग्गु जोयन्त ॥॥
धत्ता
जे वि रमन्ता आसि लक्षण-रामहुँ समि । णाषा सुरथासप्त आवण थिय मुह उवि ।।९।।