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पटमचरित
[२] जं परिवधु पटु परिओसें । जय माल-जय-तूर-णियोसें ।।१।। दसरह-चरण-अपलु जयकारेवि। दाइय-मछरु मणे 'भवहार नि ।।२।। सम्पय रिद्धि विवि अवगणे वि। तासही तणउ सानु परिमण्य वि।।३।। णिग्मउ वल वस्तु णाई हरेप्पिणु । लक्षणो वि लक्षण िलएप्पिणु।।४।। संचल्लेहिं तेहि विहाणड । ठित्त इहामुतु दसरह राण3 14|| हिंधव, गाई तिसूल सां। हरहिवासह धाले ॥६॥ धिगधिगत्यु' जणगुण पोल्लिंड। 'लसिउ कुल-कम वि सुमहल्लउ।।७।। अहवह जह मई सथ्नु प पालिउ । तोणिथ-प्पामु गोउ महँ मलिश ||८|| परि गड रामु ण सच्च विणासिर । सच्चु माइन्तड सन्धहों पासिउ ।।५।। सज्य अम्बरें तयइ दिवायर। सच्चे समजण चुक्कइ सायरु ॥१०॥ सच्चे चाउ बाइ महि पच्चद। सरने भोसहि खयहाँण बाई ॥१३॥
पत्ता जो ण वि पालइ सम्पु मुधे दालियर पहन्तउ । णिषजह णरय-समुहे बसु प्रेम भलिउ यवन्तउ' ॥३॥
चिन्तावषणु णराहिउ जाउँ हिँ। बलुणिय-णिलउ पराइड तावे हि ॥३॥ दुम्मणु पन्तु णिहालिउ मायएँ। पुणु विहरूवि बुत्तु पिय-वायएँ ।।२।। ‘दिय दिवें घहि तुरगम-णाएँ हिँ। अज्जु काइँ अणुवाहणु पाएँहि ॥३॥ दिदि बन्दिपण-विन्दं हि थुम्वहि। अज्ज काइँ थुम्वन्तु ण सुचहि ॥४॥ दिवे दिवे धुम्वहि चमर-सहासें हिं। अज्जु काई तउ को विपा पासे हि ॥५॥ दिवें दिवं लीयहिँ बुधहि राणउ । अज्ज का दीसहि विराणउ ।।६।।