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________________ चालीसमो संधि v अवरुद्ध किया जा सकता है ? जिनके द्वारा रोमका अप्रभाग भी टेढ़ा नहीं किया जा सकता, उन निशाचर समूहोंके द्वारा क्या ग्रहण ? जो राजा रावण पक्ष के कहे जाते हैं, उन्हें भी मैं युद्धके प्रांगण में करूंगा। शं ही निश्चयसे उन्हें महान युद्ध देता हुआ दूपणके पथपर भेज दूँगा | ॥१- १० || [१६] विद्याधर विरावित फिर इस प्रकार कहता है, "यहाँ रहकर हम क्या करेंगे ? तमलंकार नगर में प्रवेश कर, जानकी की वहाँ खोज करेंगे।" इन शब्दोंसे, राम सेना के साथ वहाँ इस प्रकार चले जैसे जलचरोंसे रौद्र महासमुद्र ही उछल पड़ा हो । खरसे रहित ! शत्रुको क्षोभ उत्पन्न करनेवाली आनन्दभेरी बजा दी गयी मानो लहरोंके समूहबाली समुद्रकी बेला ही गरज उठी हो । स्वर्णदण्ड उठा लिये गये । धवल ध्वजपट उड़ने लगे । गजघटाएँ रसमसाती और कसमसाती हुई तड़तड़ करने लगीं। कहीं खिलखिलाते और हिनहिनाते हुए घोड़े निकलने लगे । चंचल, चटुल और चपल चल-वलय से प्रवल उन्हें कवच पहना दिये गये। कहीं मदसे भरी हुई, जिसके सिरपर भ्रमर गुन-गुन और चुमघुम कर रहे हैं ऐसी गजघटा : पथपर चल पड़ी। जिसमें चन्द्रनवल परिमलके आमोदके पसीने से कीचड़ मची हुई है, तथा रथके गढ़ते हुए चक्रोंसे निरुद्ध भटका मर्दन किया जा रहा है, ऐसे पथपर शिविर चला, मानो प्रचुर अन्धकार दौड़ा हो। वह उस तमलंकार नगर एक पलके भीतर पहुँच गया । अत्यन्त क्षम राम प्रियाके विरहसे क्षीणशरीर होकर ऐसे लगते थे, मानो कान्ताके उसी मार्ग से जा लगे हों । प्राणोंसे भयभीत सीता सहित दुष्ट रावण शायद यहां तो नहीं भाग आया, मानो इसीलिए धरती विदीर्ण कर रास्ता बनाकर रामने पाताललोक में प्रवेश किया ॥१-१-० ॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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