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पडमचरित रोमग्गु वि वक्ण होह जेहि। किं गिलि पर-साहिं गहणु तेहिं ॥५॥
पत्ता
से परवाइ भक्खिय रावण-पक्खिय ते वि रण णिवमि । छुछु दिन्तु णिवत्तउ जुन्यु महन्त दूसण-पन्य पट्टमि' ॥१०॥
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दुवई मण उगो दि एस
लिनिय लोग। तमलकार-णयह पइसेप्पिणु जाणइ तहिं गवेस?' ॥३॥ वलु मयणेण तेश, सहुँ साहणेण, संचल्दिउ । गाई महासमुद्छु, जलयर-उदु, उत्थलिउ ॥२॥ दिपाणन्द-मेरि, पडिवल-खेरि, खरविनिय । णं मगरहर-वेल, कल्लोलचोलं, गलाजिय ॥३।। अम्मिय कणय-दण्ड, धुन्चन्त धवल, धुअन्धयबद्ध । रसमसकसमसन्त-, तरसडयन्त-, कर गय-घड ॥४॥ कस्थह खिलिहिलन्त, हय हिलिहिलस, गोसरिया । चञ्चल-बाल-चवल, चलवलय पवल, पम्परिया ॥५॥ करथइ पहें पय, दुग्धो-अष्ट, मय-भरित्रा। सिर गुमुगुमुगुमन्त-युमुचुमुचुमन्स, चशरिया ॥६॥ चन्दण-घल-परिमलामोय-सेय-क्रिय कदम। रह-
स्नुपन्त-व-विस्थक-छडय-मई-महमें ॥७॥ एम पयट्टु सिभिरु, गं बहल-निमिरु, उद्धाइड । समलकार-णयरु णिमिलन्सरेण संपाइउ ॥2॥ पय-विरहेण रामु, अइ-खाम-खामु, शीणनउ । विय-मग्गेग तेण, कन्तहें चणेण, णं लग्गउ ॥ ५॥
पत्ता दहवयणु स-प्लोया पाणहूँ मीयउ मछुदु पसह गठ्ठ खलु । मेइणि विहारवि मगु समार वि णं पायाले पइटु वलु ॥१०॥