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________________ ३२२ पउमचरित दुवई मन्ति-णिवाण विहि मि अवरोप्पर ए आलाष जाहिं। विगहु-विराहिएहि आयामिड पर-वलु सयलु सा हि ॥१॥ तो खरोऽरिभरणेण | कोशिओ जण इष्येण ॥२॥ एतहे स-सन्दणेण । सोऽशुराह-गन्दणेण ॥३॥ आहवे समस्थएण। चाय-वाण-इत्थएण ॥४॥ गुज-वाण-लोयणे। मीसागावलोयणेण ॥५॥ कुम्भि -कुम्भ-दारणेपण । पुरुत-बहर-कारणेग ॥६॥ दूसणी जसाहिवण। कोकिआ विराहिएण ॥७॥ पहुचे (?) हो हपस्स । चोओ गो गयस्स ॥६॥ वाहिओ रहो रहस्स। धाइओ जरो परस्स ॥९॥ घत्ता स-गुख-स-सपणाहइँ कवय-सणाहर सप्पहरणई स-चाहण। णिय-वह सरेषिपणु हकारेपिणु मिष्टिय वेणि मि साहणई ॥१०॥ [७ ] दुवई सेफ्णहाँ मिडिट सेण्णु दूसणहाँ विराहिउ खाहाँ कक्षणो । हाय पडु पलह तूर किउ कलयलु गल-गम्भौर-मोसणो ॥ १ ॥ हिं रण-संगमे। कुपण-नुरण में ॥२॥ रह गयनोन्दले। वनिय मन्दले ॥३॥ मड-ऋडमाणे। मोडिय-सन्दणे ॥१॥ जरवर-दण्डिएँ। किन-किलिविपिडणें ॥५॥ त्राला-लुधिरें। रह-सथ-खचिएँ ॥६॥ तहिं अपरायण | ' खर-णारायण ॥७॥ मिडिय महष्चल वियड-उरस्थल ॥८॥ वे वि समच्छर। वे वि भयकर ॥९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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