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परमचरिख
पत्ता तिल तिलु कप्परियई उरें जजरिय िरत्तर फुरियाणणाई । दिइँ गम्भीर सह-सरीरइँ सर-सल्लियाँ सवाहणई ॥३०॥
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को वि सुभमु स-तरामु को त्रि सजाणु सल्लिओ।
को वि पडन्तु दिछु आयासहीं सक्षण सर-मिरछिमओ ॥१॥ भडो को वि दिट्टो परिच्छिन्न-गतो । स-दन्ती स-मम्ती स-चिम्धो स-सी॥२॥ भड़ो को विषावल्ल-भल्लेहि भिषणो। मलो की षि कप्पद्वुमो जेम छिगणो ॥३॥ मो को वितिक्वग्ग-णाराय-विहो।महा-सस्थवन्तो व्य सस्थेहि विन्द्रो ॥४॥ भडोको वि कुन्द्राणको विष्फुरन्तो । मरन्तो बिहकार-सकार देतो ॥५॥ भडो को विभिण्णो सदेही समस्यो । एमुज्छाविप्रो को वि कोरण्व-हस्थो।।६॥ मुलओ को वि को नुब्भोजीपमाणो । चलछामर-स्ट्रोह-विजि जमाणी ॥७॥
सा-कदमे मदवे को वि खुसो । वलन्तो वलन्तो नियन्तेहि गुप्तो ॥८॥ महो को विभिगो खुसप्पेहि एस्ती । णियन्तो कुसिछो कप सिद्धिंण पत्तो ॥९॥
पत्ता लक्खण-सर-मरियउ अधुच्चरियउ खर-दूसण-बलु दिट्ट किह । साहार ण वन्धइ गमणु ण सन्धद पवलड कामिणि-पम्मु जिह ॥१०॥
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दुबई परधण-परकलत्त-परिसेसहुँ परपल-सपिणवायहुँ ।
एक लक्षणेण विणिवाइय सत्त सहास राय? ॥१॥ जीवन्त भद्धएं वहरि-सेपण। अनुएँ दलवष्टि महि:णिसणें ॥२॥ सहि अबसरे पक्र-जसाहिएण। जोक्कारित यिण्ड चिराहिएण ||३||