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पडमचरित
घत्ता
णिणु लक्षण-जियर अण्ण मिना-साम्मे हि मनः । राहत भमइ भुअङ्ग जिह वर्ण 'हा हा सीय' भणन्तउ ||८||
[ २] हिण्डन्तें भग्ग-महप्फरेंण । वण-देवय पुचिश्य हलहरेण |1|| 'स्वगणे खणे वेयारहि काई महूँ। कहें कहि मि दिट जइ कन्त पई ॥२॥ बलु एम मणेपिणु संचलिउ । तावस्गएँ घण-गइन्दु मिलिउ ।।३।। 'हे कृक्षार कामिणि-गह-गमण। कह कहि मि दिट्ट जह मिगणयण'Hal णिय-पहिरवेण घेयारियउ। जाणइ सीयएँ हकारियड ॥|| करथइ दिहँ इन्दीवर जाणइ धण-णयणई दोहर ।।६।। करथा असोय-तरु हलिउ। जाणइ धण-वाहा-ढोलिया ||७|| वणु सथल गवेस वि सम्बल महि । पल्लट्टु पडीवउ दासरहि |||
पत्ता तं जि पराइउ गिय-भवणु जहि अच्छि आसि लयस्थले । चाव-सिलिम्मुह-मुक्क-कर बलु पडिउ स ई भु द-मण्ड ॥२॥
चालीसमो संधि दसरहे-तव-कारणु सम्बुद्वारण वजयण्ण-सम्मय-भरिन । जिणवर-गुण-कित्तणु सीय-सइत्तणु तं णिसुण राहाव-चरिउ ।
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ध्रुवकं सं सन्तं गयागसं घीस संताव-पाव-संतास (१) । बारु-रुचा-रएणं बंदे वेवं संसार-चोर-लोसं ॥१॥