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पठमधारित
पुणु उहइ पुणु कन्द कगा। पुणुश्त हि अप्पर आइगह ॥७॥ पुणु सिह अफालइ धरणियहें। रोषन्ति सुर रोवन्ति पहें ॥६॥
पत्ता जे चउदिसे हि थिय णिय हाल पसारधि तहषर । 'मा रुव घन्दहि' णं साहारन्ति सहोयर ॥९॥
[८] अप्पापड सो चि ण संधवह। रोवन्ति पुणु वि पुणु उट्टवइ ॥१॥ 'हा पुत्त विराज्झहि सहहि मुहु। हा विरुप गिदएँ सुत्तु सुहुँ ।।२॥ हा किण्णासायहि पुस मई। हाकिं दरिसाविय माय पइँ ॥३॥ हा उपसंहारहि रू लड्डु । हा पुत्त देहि पिय-धयणु महु ॥४॥ हा पुत्त काइँ किउ रुहिर-बडु। हा पुस एहि उच्छन्ने बह ।।५।। हा पुत्त लाइ मुहें मुह-कमलु। हा पुस एहि पिउ थण-जुअलु ॥६॥ हा घुस देहि आलिङ्गणड जे पञ्चमि धणे घद्रावणा ॥७॥ णव-मासु छुन्धु जं मइँ उमेरे । तं सहल मनोरट अज्जु जण ॥८॥
पत्ता हा हा दड्ड चिहि कहि णियड पुग्नु कहाँ समि । काइँ कियन्त किउ हा दहब कवण दिस लामि ।।९।।
[१] का अन्जु श्रमालु विहिं पुरहँ। पायाललक-सवाउरहूँ ।।१।। हा भन्नु घुक्नु बन्धव-जणहाँ। वा अपजु पडिय मुअ राषणहाँ ॥२।। हा अज्जु खरहाँ रोबाधणउ । हा प्रअ रिउ घद्धावणउ ||३|| हा अज्नु फुट्टु कि ण जमहाँ सिरु । हा पुप्त णिवारिउ मह मि चिरु ॥ से लागु ण सावण्णही गरहीं। पर होइ अबू-चकेसरही ॥५|| किं तेण जि पाडिउ सिर-कमलु। मणि-कुपहल-मपिढयाण्डपलु' ॥६॥