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परमचरित जोह-ललन्त दन्त-उपन्तुर। उम्भव-नियर-दाउ भय-मासुर ॥५॥ जम-पहि तेहिं कन्दम्तड। णरबह णिउ स-मन्ति प-कलत्ता ॥१॥ गम्पिणु जमरायहाँ जाणाविध। एणमुणिम्द-णिवहु पीलाविढ" ॥७॥ सं णिसुणेपिणु कुछड पयाषद । “तीहि मि दरिसावहाँ गल्यावह" ॥८॥
धत्ता पहु-माएसे दुण्णय सामिणि पत्तिय छट्टहिं पुढविहिं पाविणि । जहिं खुषखइँ भइ-धोर-रउदइ णवराउसु वाघोस-समुदई ॥९॥
[१३] अण्णोपण जेत्थु हक्कारित गणेष कारणारिन् । अपणोणेण दल वि दलनहिड। अपणोपणेण हणे षि णिचहिउ ॥२॥ अण्णोपण तिसूल मियाउ। भणगोषणे दिसा-वलि दिग्णउ ॥३॥ मपणोषणेप कडा पमेलिस। अगोषणेण हुआसणे पेल्लिज ॥३॥ अण्णोण्णेण बहतरणि तिट । अण्णीगणेण धरवि णिमन्तिड ॥५॥ अण्णोण्णण सिला अपकालिट। अपणोण्णण दुहाएँ हि फालिड ॥६॥ भगणोण्णेण धरै चि आवीलिंड। अण्णोषणेण वस्थु जिह पीलिउ ॥७॥ भण्णोपणेण घरह दलियत । अग्णोण ग्यव जिह मिलियड अण्णोपणेण वि कुवे पमुक्कल। पणोपणेण धरेपिणु सकळ ॥९॥
घसा अण्णोणेण पकोइङ रागें अपणोण्णेण विद्यारिउ खागें । अण्णोण्णेण गिलिना जेथु दुपय-सामिणि पत्तिय तेस्थु ॥१०॥
[१५] अपणु वि कियउ जेण मन्तित्तणु। वसिड प्रसिपलवणे अलक्खणु ॥३॥