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पजमचरित
का फलु पञ्च-महत्वपहुँ। भणुप्रय गुणवय-सिक्खावय? ॥५॥ का फलु लाइ अणमि । उपवास-पोसव संथविऐं ॥२॥ फल कहूँ जीव सम्मीखियएँ। परहणे परदारे अहिं सियएँ ॥३॥ काइँ फलु सच्चे बोलिएण। अलिअक्षरेण आमेशिएंण ॥४॥ का फलु जिणवर-अशियएँ। दर-विडले घरासणे रश्चियएँ ॥५॥ काइँ फलु मासे छपिडण । रत्तिरित देहें दरिद्वाण ॥३॥ का फल जिण-समजणण। यलिन्दीबङ्गार-बिलेवण ॥७॥
घत्ता किं चारिसे णाणे व दसणे अण्णु पससि जिगषर-सासणें । के फल होइ मण-विधारा संविण्णासें कि कहहि मण्डारा ॥४॥
पुणु पुणु घि पडीवड मणइ पलु । 'कहें सुक्रिय-दुनिय-कम्म-फलु ॥१॥ कम्मेण केण रिङ-उमर-कर । सयरायर माह भुञ्जन्ति र ॥॥ कम्मेण केण पर-चक्र-घर । रह-तुरब-गएँ हिं बुज्यन्ति गर ।।३।। परियरिय सु-णारिहिं णरचर हिँ।। विजिनमाण वर-नाम हिं ॥४॥ सुन्दर सन्द मन्द जिह ।। जोह हिं जोड़ घुज्झन्ति किह ॥५॥ कम्मेण केण किय पॉलय । जर कुण्ट मण्ट बहिरन्धलय ||६|| काणीप दीण-मुह-काय-सर । शाहिल मिल्छ णाहल सर ॥७॥ दालिद्दिय पर-पेसणहै कर । क कम्म उपजन्ति पर ॥८॥
धत्ता
धीर-सरीर वीर तव-सूरा सम्ब? जीव आसाजरा । इन्दिय-पसवण पर-उपपारा ते कहिं णर पावन्ति महारा ॥९॥