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पउमचरिद
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परमेसर पुणु बि पुशु वि कहइ । “जिउ तिष्णि अवस्थउ उपहा ॥१॥ उप्पत्ति-जरा-मरणावसरु। पहिएड में णिषन्तु उ देह-घरु ।।२।। पुगाल-परिमाण-सुन धरॅवि। कर-चलण चयारि खम्म फरेंवि ॥३॥ बहु-अस्थि जि अन्तहिं बक्कियउ । मासिटु धम्म-शुह-पक्कियउ ॥३॥ सिर-कलसालटिल संचरह। माणुसु वर-भवणहाँ अणुहाइ ॥५॥ तरुणत्तणु शाम साम यहह। पुणु पच्छएँ जु-भाड छहा ॥६॥ लिक कम्पह जम्पद ण वि वयणु । सुणन्ति फण्ण ण णियह पायणु ॥७॥ ण बहम्ति चलण करन्ति कर । अर-जजरिहोइ सरीक पर ॥॥
घसा पुणु पच्छिम-काले णिव देह-धए । जिड सेम विहान उड्काइ मुवि तरु ।।९।।
संणिसुणे वि णरवइ उवसमिउ । णिय-मान्दणु णिय-पऍ समिमिड॥ ॥ अपुणु पुणु माव-गाइ-गहिउ । णिवन्तु णराहिष-सय-साहिउ ॥२॥ सहि उप-मुहम णिग्गन्ध थिय । कर-कमले हिं केसुप्पाद किय ॥३॥ पुणु सवण-साघु तहाँ पुरवरहीं। गड पम्दणहत्तिएं जिणवरही ॥४॥ सम्मेगहों सन्त जन्म चलिय। पछु छड्वें वि उप्पण पलिय ॥५॥ ते उदय-मुख्य दुइ णियलिय। वसुभूइ-भिल्ल पहिलहें पडिय ॥५॥ भाइड धाणुक्त वड-वहरु । गुलाहल-णयशु पोय-सहरु ॥७॥ पुष्पेकछ-पछु घिर-योर करु । अफालिम पशुहरु गहिर-सरु ॥८॥
पत्ता यहर ण कुहन्ति होन्ति ण जन्जर हड इणइ णिरुसु सप्त-मवन्तर ि॥५॥