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________________ पउमचरित सत्तम थाणे ग गासु लइ जइ । अट्ठ में गमणुम्माएँहि मिजइ ॥७॥ पवमें पाण-संदेहहाँ दुका। दसमएँ मरहण केम वि चुकाई ||4 घत्ता कहिङ रिन्दहाँ किक्करें हिं 'पहु दुकरु जीवइ पुत्सु सर । काहे वि कपणहें कारणेण सो दसमी कामावाथ गउ ॥९॥ [.] गाग-परामर-कुल-कलियारउ । चन्दगइ पडिपुच्छिड पारज ॥६॥ 'कहि कहाँ तणिय कण कहिं दिही। जा मङ्गु पुत्तही हियएँ पट्टी' ॥२॥ कहइ महारिसि 'मिहिला-राणउ । चन्दकेउ-णामेण पहाणउ ॥३॥ तहाँ सुउ जणड तेरथु मई दिवउ । कपणा-रयणु तिलोय-वरिटूट ॥५॥ तं जह छोड कुमारहों भायहाँ। तो सिय हरइ पुरन्दर-रायहीं' ॥५|| तं णिसुणवि विजाहर-णा। पेसिउ अपलबेउ भसगा ॥६॥ 'जाहि विवेहा-वहट हरेवउ । मइ विवाह-संवन्धु करेषड' ||७॥ गउ सो बन्दगइहें मुगु जोऍवि। इन्दुर हुक्क हरगम होएँवि ॥६॥ कोड्ढ़े चडिउ णराहिउ जाहिँ। दाहिण सेवि पराइउ ताहिं ॥५॥ मिहिलाणाहु मुएप्पिणु जिण-हरें। चबलवेड पहस ह पुरमणहरें ।।१०।। यत्ता । आणिड बणय-णराहिवह णिय-णाहहाँ अमिषड स-रहसँण । चन्दणहसिएँ सो वि गउ सहुँ पुतं विरह-परश्यसेंण ।।११।। [११] विज्जाहर-गर-णयणाणन्दे हिं। किउ संभासणुविहि मि परिन्दे हिँ ॥३॥ पभण चन्द्रगमणु तोसिय-मणु । 'विणि वि किषण करहुँ सयणतणु ॥२॥ दुहिब तुहारी पुतु महार। होट विवाहु मणोरह-गारउ' ॥३॥ अमरिसु णवर पचविउ जणयहाँ। 'दिपण कण्ण म. दसरह-तणयहो ।।४।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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