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एकसीसमो संधि लोट-पोट किया है। किसने ऐरावतका दाँत उखाड़ा है ? किसने 'तलाहार से सूर्यको गिराया है, किसने अशेष समुद्रका उल्लंघन किया? किसने फणमण्डपपर शेषनागको चूर-चूर किया ? किसने कपड़ेसे इवाको बाँधा ? मेरुरूपी महागिरि किसने टाला। जैसे तुम वैसे ही दूसरे भी सामान्य हैं। बहुत-से लोग खूब गरजे परन्तु रणमें दुर्वार मेरे शक्ति-प्रहारोंसे वे केवल सौ टुकड़े किये गये देखे गये" ॥१-२॥
[१०] अब अरिदमनने सुभपर इस प्रकार आक्षेप किया तो लक्ष्मण दावानलकी तरह भड़क उठा-"मैं ही जितपद्मा लेने में समर्थ हूँ। मैंने ही आज यमपर आघात किया है। मैंने ही हाथके अग्रभागसे आकाशको छुआ है। मैंने ही आज सुरेन्द्रको भोगमें परास्त किया है। मैंने ही धरतीको पैरसे विदीर्ण किया है। मैंने ही आघातसे दिमाजको लोट-पोट किया है। मैंने ही ऐरावतके दाँतको भग्न किया है। मैंने ही तल-प्रहारसे सूर्यको गिराया है। मैंने ही अशेष समुद्र लाँधा है। मैंने ही फणमण्डपपर शेषनागको चूर-चूर किया है। मैंने ही कपड़ेसे हवाको बाँधा है | और मैंने महागिरि मेरुको टाला है। त्रिभुवन भयंकर मैं ही अजर, अमर, और संतीस करोड़ देवताओंमें अजेय हूँ। हे अज्ञानी अपण्डित क्षेमंजलि राना शक्ति छोड़ो, यदि तुममें शक्ति हो" ॥१-९||
[११] यह सुनकर प्रधान क्षेमंजलि राना गरजता हुआ चठा । जिसके हाथमें शक्ति है, ऐसा शक्तिका प्रकाशन करने वाला वह धक-धक करती हुई आग सहित ऐसा लगता था, मानो जैसे आकाशमें तेजपिण्ड सूर्य हो, जैसे अपनी मर्यादासे त्यक्त समुद्र हो, जैसे अनवरत मद जल झरनेवाला मैगल हो, जैसे शत्रुमण्डलका नाश करनेवाला माण्डलिक राजा हो,