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________________ एकतीस संधि देव आया है जितपद्मा के नाम आकारको पूरा करनेवाला, परबलका घातक, गर्वित शत्रुका दमन करनेवाला, शत्रु-समूहका संहार करनेवाला, और शक्तियों के साथ तुम्हारी भी शक्तियों का हरण करनेवाला । बहुत कहने और निष्फऱ कहने से क्या, उस अरिदमन राजासे कहना कि यह दस बीसकी नहीं पूछता है, सौ शक्तियोंकी इच्छा रखता है । पाँच शक्तियों के ग्रहणकी क्या बात ? ॥२- १०।। [८] यह सुनकर प्रतिहार वहाँ गया कि सभामण्डपमें जहाँ अरिदमन था। उसने प्रणाम कर राजासे पूछा - "परमेश्वर, निवेदनके लिए आज्ञा ? कालसे प्रेरित एक सुमट आया हुआ है। मैं नहीं जानता कि वह सूर्य चन्द्र या शक क्या है। क्या वह अतुलित प्रताप कामदेव हैं। परन्तु उसके पास एक धनुप और पाँच वाण नहीं हैं। उस मनुष्यकी कोई नयी भंगिमा है । उसके शरीर से शोभा कभी भी नहीं हटती । वह इस प्रकार कहता है कि मैं जितपद्मा लूँगा। पाँच क्या, मैं इस शक्तियाँ ग्रहण करूँगा ?” यह सुनकर अरिदमन कहता है - " देखता हूँ । बुलाओ कौन वर है ?" प्रतिहारके द्वारा बुलाया गया लक्ष्मण आया, विजयलक्ष्मीको प्रसाधित करनेवाला और विजयका आकांक्षी । अत्यन्त उत्कट सुखवाले, दीर्घ नेत्रोंवाले, अजेय नरपतिवृन्दों द्वारा लक्षणोंसे सहित लक्ष्मण इस प्रकार देखा गया, मानो गजराजों द्वारा सिंह देखा गया हो" ॥१-२॥ [९] जब लक्ष्मण पास आया तो राजाने उससे हँसकर कहा – “जितपद्माको लेने में कौन समर्थ हैं। किसने आगमें हाथ डाला हैं। किसने सिरसे की प्रतीक्षा की है। किसने आज कृतान्तको घायल किया है। किसने हाथके अमभागसे आकाशको हुआ है। किसने भोगसे इन्द्रको पराजित किया हैं । किसने धरतीको पैरसे विदीर्णं किया है, किसने घाव से दिग्गजको १२ १७७
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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