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जिपमहं माण- मरट्ट-दलणु । रिठ-संघा यहाँ संघाय करेणु
पउमचरित
पर-वल-मसक्कु दरियारि-दमणु ॥८॥ स सत्तिर्हि तुज्झु विपति हरणु ॥९॥
घत्ता
(अह ) किं बहुएं जम्पिऍण निष्फल-चविग्रॅण युम हि तं मरिम | दस-बीस ण पुच्छ लउ वि पछि पञ्च सत्तिहिं को गणु' ॥ १० ॥
लक्खणु पासु पराइड जं जे । 'को जियपउम कवि समथु । केण सिरेण पछिउ घज्जु । क्रेण णु छिन्तु करों । केण वसुम्धरि दारिय पाएँ ।
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संणिसुणेवि गज पडिहारु तेरथु । सह-मण्डवें सो अरिंदमणु जेथु ॥ १ ॥ पणवेष्पिणु वुह तेज राज | 'परमेसर विष्णत्तिएँ पसाउ ॥१॥ मञ्जु कार्ले चोइ भाउ एक्कु । किं कुसुमाउहु अतुलिय-याउ । तरों व भक्ति का वि । सो वह एम जियपउम लेमि । तं सुिर्णेवि पण सत्तुमशु । पडिहारे सरि भाउ कण्डु ।
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हुँ कि अक्कु मिश्र सक्कु || ३ ॥ पर पञ्च वाण णउ एक्कु वाउ ॥४॥ फिल्इ ण रुच्छ भङ्गहों कवि ||५|| किं पचति दस सति घरेमि ||६|| 'पेवरषमि कोषकद्दि वरइसु कबणु ।। ।। अलच्छि - पसाहिउ जुवार- राहु ॥८॥
घत्ता
एहिँ ।
अच्चुष्भड पयर्णे हिं दीहर-गयणे हिं णरवइ-विन्दहिँ लक्षित लक्खणु एन्त स रुक्राणु जेम मइन्दु महागऍं हिं ॥ | १ ||
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सुणिवेण इसे पिणु से जे ॥ १ ॥ केण हुवासणें ढोइड हत्॥२॥ क्रेण कियन्तु विधाइड अज्जु ॥ ३ ॥ केण सुरिन्दु परजिउ भोगों ॥४॥ केण पलोडिड दिग्गज षाएं ॥ ५ ॥