SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम संधि नामगोत्र बताओ कि तुम कौन हो ? यह सुनकर लक्ष्मीका वर लक्ष्मण बाला कि कुल और नाम (पूछनेका) का यह कौन-सा अवसर है ? जैसा तुमने सोचा है ग्रहार करो, प्रहार करो, क्या तुमने यह विचार नहीं किया कि जिसका बड़ा भाई राम है। रघुकुलका पुत्र लक्ष्मीका धारण करनेवाला और तुम्हारे जीवनका हरण करनेवाला, हे राजन् ! मेरा नाम लक्ष्मण है ।।१-५।। १५५ [११] जब श्रीधर (लक्ष्मण) ने अपने कुलका नाम लिया तो महीधर ने धरतीपर धनुष फेंककर पेरावतकी सूँड़के समान स्नेहपूर्ण बाहुपंजरसे उसका आलिंगन कर लिया। अग्निको साक्ष्य बनाकर उसने अपराजित लक्ष्मणको कन्या दे दी । महीधर एक रथपर आरूढ़ हुआ। दूसरे रथपर आठ कुमार बैठे | लक्ष्मण सहित वनमाला एक रथपर बैठी । और राम सहित सीता एक और रथपर स्थित थी। पटु-पटह-शंख और बधावनों, नाचते हुए कुब्जक वामनों, उत्साह-धवल और मंगल गीतों, कंसाल-ताल और मृदंगों के साथ वे आनन्दपूर्वक नगर में प्रविष्ट हुए, और लोलापूर्वक दरबार में बैठे। सन्तुष्ट मन लक्ष्मण वनमाला के साथ वेदी पर जाते हुए ऐसा दिखाई दिया, जैसे मंगल गाते हुए और नाचते हुए लोगोंने जिस प्रकार जन्मके अवसर पर जिनको स्वयं भूषित किया हो" ॥१-९॥ तीसवीं सन्धि आनन्दसे भरे हुए तथा उत्साहवर्धक उस अवसर पर विजयके लिए वेगसे उछलता हुआ नन्दावर्तका निर्वय राजा (अनन्तवीर्य) भरतके ऊपर आक्रमण करता है ।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy