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________________ पउमचरित अग्भिटु सेण्णु कलयल करन्तु | "जिह खाइय रुपण तिहहणु' मणन्तु ॥१॥ सं-वयशु सुणेपिणु हरि पलित्तु । उद्धाइड सिहि णं घिऍण सित्तु ॥२॥ एखाल्लर लक्खणु बलु अणन्तु । भालगु तो वि तिण-समु गणन्तु ॥३॥ परिसक्का यह घलाह वलड्। तरुधर उम्मू वि सेण्णु दलह ॥५॥ इवाइ मिहद पाइन सुरक्ष। महि कमइ ममइ भामइ रहन ॥५॥ अवगाहइ सास इ धरह जोह। दलवह लोहा गयवरोह ॥६॥ विणिवाइय पाइय सुहड़-घट्ट। कडुआविय विवरामुह पयह ।।७।। णासन्ति के विजे समरे बुक्क । कायर-पार-कर-पहरण मुक ||॥ घत्ता गम्पिणु ऋहिउ महीहरहों 'एकहीं परहों आवट्ट सेण्णु भुव-दण्डएँ । जिम णासहि जिम मिलु समरे विहिँ एकु करेंवणमाल लक्ष्य वलिमण्डएँ'॥९॥ [१०] ते वरणु सुप्पिणु थरहरम्नु । धरणीधरु धाइड विप्फुरन्तु ॥१॥ आरूहु महारहें दिण्णु सक्छ । सणधु कुक्षु जय-लकिछ-कन्सु ॥२॥ तो दुजय दुद्धर हुपिणवार। 'हणु ह' मणत णिग्गय कुमार ॥३॥ वणमाल-कुसुम-कल्लाणमाल। जयमाल-सुमाल-सुक्ष्ण माल || गोपाल-पाल इय अट्ट भाइ। स₹ राएं व गह कुइय णाई ।।५।। एत्यन्तर रण बहु-सस्कोण। हकारिड लक्षणु महिहरेण ॥३॥ 'वल वलु समरगणें देहि शुजछ । णिय-णामु गोतु कहें कबशु सुज्छु' ॥७॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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