SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणवीसमो संधि १५३ [७] यह कहकर, नेत्रोंसे विशाल वनमालाने कपड़ेका फन्दा बनाया। वही जैसे उसे अभय वचन देता है, जैसे उसकी विवाह लीला दिखाता है, मानो उसने जिनबरको दानके लिए पुकारा हो, जैसे कुमारने अपना हाथ फैलाया हो। वह (वनमाला) गले में फन्देको लगाकर जैसे ही हिलाती है वैसे ही कुमारने आलिंगन करके उसे कण्ठ में पकड़ लिया और अभय वचन देते हुए यह कहा कि "मैं वही लक्षणोंवाला लक्ष्मण हूँ, सुमित्रा से उत्पन्न, दशरथका पुत्र रामके साथ वनवास के लिए आया हुआ हूँ ।" उकर वह अपने विवि हुई। इतने में हलायुध, (राम) पुकारने लगते हैं-लक्ष्मण कहाँ ? ओ लक्ष्मण कहाँ गये हो, आओ। यह सुनकर, जिसकी बाँहें पुलकित हैं ऐसी महीधरकी कन्याने नटकी तरह अपने मनको नचाया कि मेरा शुभ मनोरथ आज सफल हुआ कि जो मैंने पति लक्ष्मण पा लिया ||१-९ ॥ [4] तब इसी बीच राघवचन्द्र लक्ष्मणको देखा । वह, अपनी पत्नी के साथ रामके चरणों में इस प्रकार गिर पड़ा जैसे दीपशिखां के साथ तम हो, जैसे बिजलीसे गृहीत बादल हो, मानो हथिनी में आसक्त हाथी हो । रामने कहा - "हे नयनान्दन शत्रुमर्दन लक्ष्मण, सुन्दर-सुन्दर । यह कन्या तुमने कहाँ प्राप्त की ।" कुमार बोला – “विश्वाके समान गुणवती, महीधर राजाकी इस कन्याको क्या नहीं जानते ? जो मुझे पूर्वजन्म में कही गयी थी, उस वनमालाको मैंने वनमें देखा ।" लक्ष्मण इस प्रकार जबतक कथानक कहता है, तबतक रात चली गयी और विमल सवेरा हो गया। सुभट जाग गये और यशके लोभी वे क्रुद्ध हो गये कि 'कन्या कौन ले गया'। वे तैयार हो गये। तब तक दुर्जेय उन्होंने पुनः रथगजों और चपल अश्वोंसे चारों दिशाओं में देखा, और रणमुखमें उन दोनों राम-लक्ष्मणको
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy