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________________ १४९ एगुणतीसमो संधि [५] जिनवरके समान सारसे अंचित अशोक वृक्ष उसे दिखा। वह उससे लिपट गयी। फिर उसने अशोक वृक्षसे प्रतिवादन किया, "जन्म-जन्ममें बार-बार लक्षणों सहित लक्ष्मण मेरा प्रिय पति होगा।" बार-बार जब वह इस प्रकार नमस्कार करती, तब तक रात्रिके दो प्रहर बीत गये । समस्त सेना नौद में इस प्रकार मग्न हो गयी, जैसे सम्मोहनके जालसे प्रेरित हो । तुरन्त वनमाला निकल पड़ी, हार, डोर और नूपुरोंसे स्खलित होती हुई। लक्ष्मणके विरहजलमें व्याकुल होती हुई खिन्न हारिणीकी तरह चित्तमें उद्भ्रान्त होती हुई वह आधे पलमें वटवृक्षसे ऐसे जा लगी, मानो रमणके लिए चंचल कोई यार से जा लगी हो । लक्ष्मणकी आकांक्षा रखनेवाली वनमाला वृक्षपर इस प्रकार शोभित हो रही थी कि जैसे मेघोंमें चमकती हुई बिजली हो, या जैसे किलकारियाँ भरती हुई जोडावणिय ?? भीषण प्रत्यक्ष वह यक्षिणी हो ॥१-९॥! [६] वहाँ उस बालाने इस प्रकार आक्रन्दन शुरू कर दिया मानो वन-गजशिशुने आक्रन्दन शुरू कर दिया हो-'हे बनस्पत्तियो, गंगानदी-यमुना और सरस्वती नदियो, प्रह-भूतपिशाचो, व्यंतरी, वनयझो, राक्षसो, खेचरो, गजमाधो, सिंहो, सांभरो, रत्नाकर गिरिवर जलचरो, गण गन्धर्वो, विद्याधरो, सुरसिद्ध महासाँप किन्नरो, यम स्कन्द कुवेर और पुरन्दरो, बुध-वृहस्पति-शुक्र-शनिश्वरो, चन्द्र-सूर्य-ज्योतिषो, वेताल-दैत्य और राक्षसो, वैश्वानर-प्रभंजनो, मेरे वचन सुनो और उस लक्ष्मणसे इस प्रकार कहो कि, "लम्बे बाँहोवाले महीधर राजाकी भयसे रहित वनमाला नामकी बेटी कहती है, कि लक्ष्मणपतिका स्मरण करती हुई तथा आक्रन्दन करती हुई उसने वटवृक्षपर अपने प्राण विसर्जित कर दिये" ||१-९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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