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पडमचरिड
[५] दिनु असोयषष्छु परिअश्चित। जिणवरो न सम्भाव अति पुणु परिषायणु कियर असोयहाँ । 'अपणु ण हह-लोयहाँ पर-लोयहाँ ॥२॥ जन्में जम्मै मुभ-मुश्रा स-सफ्षणु । पिर-मसारु होज महु लक्खा ॥३॥ पुणु पुशु पम णमंसह जाहिँ। स्पणिहें वे पहरा हुय ला हि ॥४॥ सपलु वि साहणु णिहोणालाउ । णावइ मोहण-जालें पेलिउ ॥५॥ णिग्गय पुणु षणमाल सुरन्ती। हार-डोर णेउर हि खलन्ती ॥६॥ हरि-विरहन्धु-पूरें उन्भन्सी । वुषण-कुरति व चिम्मन्ती ॥७॥ णिविस गरगो बलमगी। रमध्य-श्वक गंगोह घलग्गी ॥८॥
धत्ता रेहद दुमें वर्णमाल किह धणे विशु जिह पहवन्ती लक्षण-कङ्किणि । किलिकिछन्ति जोहावाणिय पनि
हि वालऍ कलय पकन्दियड । पण-ढिम्मऊ गं परिवन्दियउ ॥३॥ 'आयघणहाँ वपणु बणस्सइहों। गङ्गाणइ-जउण-सरस्सइहाँ ॥२।। गह-भूय-पिसायहाँ विन्तरहीं। वण-जमखहाँ रक्खहीं खेयरहों ॥३॥ गय-वग्रहों सिहाँ सम्बरहीं।। स्थायर-गिरिवर जलायरहों ॥३॥ गण-गन्धवहीं विजाहरहों।। सुर-सिद्ध महोरग-किरणरहों ।।५।। जम-वन्द कुवेर-पुरन्दरहीं। चुह-भैसइ-सुक-सणिच्छरहों ॥३॥ हरिणकहाँ कहाँ जोइसहाँ। वेगाल-दइवहाँ रखसहौँ ॥७॥ वइसाणर-वरुण-पहाणही। सहाँ एम कहिजहाँ लक्षणहाँ ॥६॥
घत्ता वुखद धीय महाहरहों दोहर-काही वणमाल-गाम भय-वजिष । करखण-पइ सुमरन्सियएँ कन्दन्तिय वध-पाय पाण विसजिय' ॥९॥