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________________ १४२ से किसुणेवि मगर बेयावर । जिह आणन्तु जगह सीचालऍ । इ-वसेण कालु विसषय | मरथु विलासिणि जण-मण-वल काळ अधु विषs अथु गुणयन्स अधु अण अत्थु जगें सूह अरधु इच्छित भुजड़ रज्जु । | एघ पट्टणु तिहि मि तेहि आवजिउ । पवर होइ जड़ कम्यु धरसु । वाउ मुसु जड रहे । खल्लुस्खेत्ते ( वहु-) कर गणेसु प्रणु दाणेसु सुर सग्गेसु अथड़ों को ण वि करह महायद || ४ || एश्यु ण हरिसु विसाठ करे |१५|| एल्यु ण हरिसु विसाउ करेघउ ॥६॥ I । अस्य-विडूण दुइ वल्लडु ||७|| - बिहूणु ममइ मगान्त |१८|| घन्ता 'साहु' मा राहवेंण इन्द्रणीक मणि-कञ्चण-खण्डे हिं । कढय-मउड-कडिसुतयहिँ पुजिउ कबिलु स ई भुव- दण्डेहिं ॥ ११ ॥ अस्थ-1 एगुणतीसमो संधि सुरक्षामर-रिउ-हमरकर कोवपद-घर सहुँ सीयऍ चलिय महाइय । वल- नारायण वे वि जण परितुट्ट-मण जीवम्स-गयरु संपाच्य ॥ अत्थ- विष्णु दीणु गढ़ दूइड ॥ ९ ॥ अघ बिहू किं पिग कउजु' ॥ १० ॥ [ 9 ] त्रिणयर- विस्तु व दोस-विवजित ॥१॥ हर तुरसुजु सुरसु ॥२॥ भगु चिरे ॥ ३॥ मलि चन्दे ॥ ४ ॥ दण्ड छते ||५|| पहरु दिवसे चिन्त झाणे सीर ॥६॥ ॥७॥ ||४||
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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