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से किसुणेवि मगर बेयावर । जिह आणन्तु जगह सीचालऍ । इ-वसेण कालु विसषय | मरथु विलासिणि जण-मण-वल
काळ
अधु विषs अथु गुणयन्स
अधु अण अत्थु जगें सूह
अरधु इच्छित भुजड़ रज्जु ।
|
एघ
पट्टणु तिहि मि तेहि आवजिउ । पवर होइ जड़ कम्यु धरसु ।
वाउ मुसु जड रहे
।
खल्लुस्खेत्ते
( वहु-) कर गणेसु
प्रणु दाणेसु
सुर सग्गेसु
अथड़ों को ण वि करह महायद || ४ || एश्यु ण हरिसु विसाठ करे
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एल्यु ण हरिसु विसाउ करेघउ ॥६॥
I
। अस्य-विडूण दुइ वल्लडु ||७||
- बिहूणु ममइ मगान्त |१८||
घन्ता
'साहु' मा राहवेंण इन्द्रणीक मणि-कञ्चण-खण्डे हिं । कढय-मउड-कडिसुतयहिँ पुजिउ कबिलु स ई भुव- दण्डेहिं ॥ ११ ॥
अस्थ-1
एगुणतीसमो संधि
सुरक्षामर-रिउ-हमरकर कोवपद-घर सहुँ सीयऍ चलिय महाइय । वल- नारायण वे वि जण परितुट्ट-मण जीवम्स-गयरु संपाच्य ॥
अत्थ- विष्णु दीणु गढ़ दूइड ॥ ९ ॥ अघ बिहू किं पिग कउजु' ॥ १० ॥
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त्रिणयर- विस्तु व दोस-विवजित ॥१॥
हर तुरसुजु
सुरसु ॥२॥
भगु चिरे ॥ ३॥
मलि चन्दे ॥ ४ ॥
दण्ड छते
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पहरु दिवसे
चिन्त झाणे
सीर
॥६॥
॥७॥
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