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________________ १५० पउमचरित के णिसुणेवि सोम्म गोलिय। 'मा? गाह वहि' एम पयोलिय ।।३॥ पुणु संचल्लाई वे वि तुरन्त । तिहुयण-तिकड़ जिणाला पत्त॥७॥ साहु णवेप्पिणु पासें णिविहई। धम्म सुणेपिणु गयर पइट ॥४॥ धत्ता दिट्ट परिम्दस्थाणु प्यतु जाणइ-मम्दाइणि-परिचडि । णर-णखसहि परियरिङ हरि-घल-चन्द-दिवायरमण्डिड ।।५।। [ ५] हरि अस्थाण-मग्में ज दिह। दियवरु पाप लएवि पण उ ||३|| पशु कुरष वारणवारहों। पाठु जिणिन्तु च भव-संसारहीं ॥२॥ ण मियख व अवमपिसायहाँ । पठ्ठ वग्गि व जोर-णिहायहाँ ॥३॥ णटु भुअ व गरुड-विहङ्गहौँ । पछु खरो स्त्र मत-मायनहीं ॥४|| गटु श्रणङ्गु ष लालब-गमणहौं । णडु महावणो व खर-पत्रणहाँ ।।५।। पठ्ठ महोहरो ध सुस्कुलिसही। पछु तुरनमो ग्च जम-महिसहो ॥६॥ तिह प्यासन्तु पदीसिड दियवस। मम्भीसन्तु पधाइल सिरिहरू ॥७॥ मण्ड धरेमि' कोण करगाएँ। गम्पि चित्त बल एषहों श्रग्गएँ ॥८॥ दुक्खु दुक्खु अप्पाणउ धीरे नि । सयल महन्भउ मणे अवहेरेषि ।।९।। दुइम-दाणनिन्द-वल-मदहो। पुणु आसीस दिण्ण वसहदहौँ ।।१०।। घसा 'जेम ससुबु महाजण जेम जिणेसरु सुकिय-कम्में । चन्दकुन्द-जस-णिम्मलण सिह तुहुँ बधु णराहिच धम्म' ॥१॥ [१२] सा एश्यन्तरें पर-वल-माणु। कहकह-सद हसिउ जगरण ॥१॥ भवणे पइट्ट तुहार' जइयहुँ । पइँ अवगणे वि घल्लिय तस्यहूँ ॥२॥ एल्यु काले पुणु दियवर कोसा । विणा करवि पुणु दिग्ण असीसा ॥३॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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