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पउमरिंड
मच्छन्ति ताव तहिं पुकु खणु । दिड ताव पराइउ कुइय-मशु ॥६॥ 'मरु मरु णीसरु-गोसरु' नपdi धूम धगधगा ॥ भय-भीसशु कुरुद्ध सणिच्छरु च ! वगु उपषिस विष्णड विसहरु ध्व ॥॥
धत्ता 'किंकालु कियन्तु मिस परिड कि केसरि केसरग्गे धरित । को जम-मुह-कुहरही णीसरिउ जो भवणे महारएँ पइसरिउ' ॥९॥
[१४] तं वयणु सुणेप्पिणु महुमहशु। आरुख समर-मर-जम्चहणू ॥१॥ पणे धाइड करि थिर-शोर-करु। टम्मूकिउ दियबरु जेम तरु ||२|| उग्गामें वि भामें वि गयागयलें । किर विवह पीवउ धरणियलें ॥३॥ करें धरिउ ताव हलपहरणण। 'मुएँ मुएँ मा हणहि अकारणेण ॥४॥ दिन-बाल-गोल-पसु-सबसि-क्तिय। छ वि परिहरु मेल्लेषि माण-किय' ।।५।। तं णिसुणवि दिग्रवम् लक्षणंण | गं मुक्कु अलवरखणु लम्सणेण ॥६॥
ओसरिट बीस पच्छामुहउ । अनुस-णिरुक्षु णं मन्त्र-गड ॥७॥ पुणु हियएँ विसूरह सणे जै खण। 'सय-खण्ड-खण्ड वरि हूउ रणें ॥४॥
घत्ता वरि पहरित वरि किउ तवचरणु वरि विसु हालाहल वरि मरणु । परि अच्चिर गम्पिणु गुहिल-वणणषि णिविसु विणियलिउ अवुहयणे ॥९॥
[१५] तो तिणि बि एम चवन्ताई। उम्माह' जणही जणता ॥१।। दिण-पच्छिम-पहरे विणिग्गयाइँ । कुअर इव विउल-वणही गया ॥२॥ विरियण्गु रण्णु पइसन्ति जाय । गरगोहु महादुमु दिलु ताप ॥३॥ गुरु चेसु करें वि सुन्दर-सराई। पं विहय पवाघाई अमखरा ॥४॥ बुझण-किसलय क-शा स्वन्ति । पाउलि विहा कि-को भणन्ति ॥५॥