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________________ १२१ पउमचरिय मुकुसुम दुग-जहाँ । of सुकु भवि भव-सागरहो । " खुद्द पिसुण तड सिर-कमलु । परि वालिखिल्लु सुऍ वदि कहु । संणिति णिविस मुक्कु पहु । चतु पुरुडेण चुक्कु णचिड बस्छु ॥३४ यो जीवन्तु ण जाहि महु ॥४ णं जिणदरेण संसार-पहु ॥५॥ उगम || ६ || णं वारणु वारि-विम्वणहीं ॥७॥ ति वालिखिय दुक्खीयरहों ॥ घन्ता ते भुत्तिक-महुमहण सहुँ कुब्बर-चिंग चयारि जण । थिय जाण तेहिं समाणु किड घउ-साथर परिमिय पुइ जिह ॥ ९ ॥ सहूँ हथे च समुद्वषिय | भरोंपादक वे वि श्रविय । उत्तिण तिष्णि वि महिहरहों । मेरुणियम्व किण्णरहूँ । विष्णु खेवं ताब पराइयहँ । वरुणहरु रवियर सावियउ | [ 11 ] तो बालिखिल- विष्झाहिवड़ अवरोप्यरु णेह - णिवब-मह ॥ ३11 कम-कमले हिँ णिवडिय लहरों । णमिचिणमि जेम चिरु जिणवरहो ॥ २ ॥ उहि समहिं परिचिय || ३ || लहु जिय-जिय-पिलयहुँ पट्टषिय ॥३॥ णं मवियहूँ अब दुक्खोबरहीं ॥५॥ of साहों चवियाँ सुरवरहूँ ॥ ६ ॥ किर महिलु पियन्ति तिसा हूँ ॥७॥ सुकुम्बुवखळ संतावियउ ||८|| 1 I
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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