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________________ पउमसरित एस्थन्तर सो विम्माहियह । सहुँ मन्तिहि कामुक्ति पर ॥१ 'इमु काई होज तइलोक-भड । कि मेरु-सिहरु सब-खण्ड गउ ॥२॥ किं दुन्दुहि हय सुस्वर-जाणं ण। किं गज्जत पलय-महाघणे ॥१॥ किं गयण-मगगे सडि सहयडिय । कि महिहरे बजासणि पलिय ॥४॥ कि कालु कयन्त-मितु हसित। किं बलयामुटु समुन्दु रसिड ॥५॥ किं इन्दहीं इन्दफ्तणु टलिउ। वय-रक्खसण कि अगु गिलिउ ॥६॥ किं गउ पायालहाँ भुवणयलु। चम्मण्ड फुटटु किं गयणयालु ॥७॥ किं खय-मारउ ठाणहाँ चलिउ। किं भसणि-णिहाड समुच्छलिट ॥८॥ कि सयल स-सायर चलिय महि कि दिसि-गय कि गजिय उवहि । ऍउ अक्तु महन्तउ अच्छरित कहाँ सौ तिहुअणु थरहरिज ॥५॥ जं णरवह एन चषन्तु सुध। पभणइ सुभुत्ति कण्टइय-मुउ ॥५॥ 'सुणि खमि जं तइकोक-मउ । उ मेर-सिहरू सय-खपढ गाउ ॥२॥ णत दुन्दुहि हय सुरवर-जप्पण। णउ गविउ पलय-महाघणेण ॥३॥ णउ गयण-मग तडि तडयडिय । उ महिहरें बजासणि पडिय ॥४॥ णड कालु कियन्त-मित हसिड । उ वलयामुहु समुदतु रसिउ ॥५॥ पड इन्दहाँ इन्दत्तणु रलिउ । स्वय-रक्ससेण पड जगु मिलिउ ॥६॥ णउ गड पायालहौ भुवणयलु। चम्म फुटतु णउ गयणयलु ॥७॥ उ' खय-मारुउ थाणहाँ चलिउ। उ मसणि-णिहाउ समुच्छलिउ ।।८॥ गाउ सग्रल स-सायर चलिय महि । णड दिसि-गय णउ गजिय उवहि ॥९॥ पत्ता सिय-लक्षण-चल-गुण-धम्तएँण णीसेसु वि जउ धवलन्तऍण । सु-कल जिम अण-मणहरण ऍड गजिउ लमाण पशुहरेंण ||१०||
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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