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पउमचरिउ
जिह कित्रिण-मिलणं पाहू -बिन्दु । जिह बहुल-पक्
जिह सम्म जिह गुरु
खय-दिवस- चन्तु || र मन्त्रे ॥ ॥ अाण-कण्णं ॥ ६ ॥
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जिड़ कामिणि जणुमाणु अदम् । जिह महुअरि कुल दुगन्धे रणे जिद परम- सोक्खु संसार-धम्मँ । - विद्यवि तत्पुरिसु जेम !
जिह जोव दया वह पाव- कम्मे ॥ ॥ क्कु ते ॥८॥
पढम
पईसइ उज्
६२
धत्ता
तं दिक्कत विंग्घु करens rरव नेहाविर | 'कहहु मन्ति-सामन्तहीँ जस-जय-मन्तहों किंमहु को वि अदि ॥९॥
सं पिसुर्णेवि मन्तिहिं वुत्तु एम | खण्ड वसुन्धर पत्र णिहाण | वणव सहाय महागराहुँ । अराइम सिद्ध जाई जाई । भर एक्कु ण सिंह साहिमाणु । तिरथङ्करणन्दणु तुह कणिट्टु । पण परमेस्वरम देहु | दुश्वार वरिवोरन्त-कालु |
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'जं चिन्तहि तं तं सिद्धु देव ॥ १॥ ग्रह-विदेहि स्वर्णेहिं समाण ॥५॥ बत्तीस सहास देसन्तरा ॥ ३ ॥ को लकर विसक साहूँ ताई ॥४॥ सप-पच-सवाय धणु-प्यमाणु ॥ ५ ॥ अट्टानवहिं माहिं परिट् ॥ ६ ॥ अखलिय-मग्ट्टु जयलच्छिन्नोहु ॥७॥ णामेण बाहुबलि वल-विसालु ॥ ८ ॥
घता
खन्तिऍ धरियउ जड़ सो कह विविह
पट्ट मि देव दलव ९
सोहु जेम पत्रस्वरिय तो स खन्धावारें एक पहारें
तं वयणु सुर्णेवि दट्टाहरेण ।
पटुविय महन्ता तुरिय तासु । जद्द गठ पडिवण्णु कयात्रि एम |
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भरण मरह- परमेसरेण ॥१॥
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करें केर राहिवासु ||२||
करहु महु मिड जेम' ||
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