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________________ पवमो संधि रंगसे रंग गयी |२|| [६] उसमें नीतिका आश्रयभूत राजा श्रेणिक शोमित है। कौन-सा राजा है कि जिसकी उससे तुलना की जाये। क्या त्रिनयन ( शिव ) की ? नहीं मई, मह शिकार हैं। चन्द्रमा की ? नहीं नहीं, उसका एक पक्ष है । क्या दिनकर की ? नहीं नहीं, वह दहनशील है। क्या सिंहकी ? नहीं नहीं, वह क्रम ( परम्परा) को तोड़ कर चलता है। क्या हाथी को ? नहीं नहीं, वह हमेशा मत्त रहता है। क्या पहाडकी ? नहीं नहीं, वह व्यवसायसे शून्य है ? क्या समुद्र की ? नहीं नहीं, यह खारेपानीवाला है। क्या कामदेव की ? नहीं नहीं, उसका शरीर जल चुका है। क्या नागराज की? नहीं नहीं, वह कर-स्वभाववाला है। क्या कृष्णकी? नहीं नहीं, उनके वचन कुटिल हैं । क्या इन्द्र की ? नहीं नहीं, उसकी हजार आँखे हैं। उससे वही समानता कर सकता है जिसका आधा दाहिना भाग, उसके बायें आधे भागके समान हो ॥१-८॥ धत्ताइतने में आकाशरूपी आँगन, सुर और असुरों के वाहनोंसे छा गया। तीर्थकर जिनेन्द्र महावीरफा समवशरण विपुलगिरि ( विपुलाचल) पर पहुँचा ।। [७] जिन्होंने अपने पैरके अग्रभागसे पर्वतराज सुमेरुको चलित कर दिया, जो बामसे उबल और चार कल्याणोंसे युक्त हैं, जिन्होंने 'घार घातिया कोका नाश कर दिया है, जो कलिकाल के दण्ड स्वरूप हैं, जिनका शरीर चौतीस अतिशयोंसे विशद्ध है, जो तीनों भुवनोंके लिए प्रिय हैं, जिनके ऊपर धवल छन्त्र है, जिनका पैर पन्द्रह कमलोंके विस्तारपर स्थित रहता है, और चारों निकायोंके देवोंक द्वारा जिनकी स्तुति की जाती है, ऐसे परमेश्वर अन्तिम तीर्थकर बर्द्धमान विपुलाचलपर ठहर गये । उनका समवशरण एक योजन प्रमाण था। उसमें तीन
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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