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________________ पंजमचरित बुहयण सयम्भु पर विण्णवह । मह परिपउ अणु णाहिं कुकह ॥१॥ बायरणु कयावि ण जाणियउ। उ वित्ति-सुलु क्वाणियउ ||२|| णउ पश्चाहारहो तत्ति किय । णड संधि उपरि बुद्धि थिय ॥३॥ गाउ णिसुभउ सस वित्तियज । छन्विहर समास-पडसियउ ॥४॥ छकारय दस तयार ण सुय । बोसोवसग्ग पच्चय बढ्य ||५|| ण बलावल धाउ णियाय-गणु। उ लिनु उपाइ धक्कु वयणु ।।६।। ण णिसुणिउ पञ्च-महाय-कन्छ। उ मरहु गेउ लक्षणु वि सत्रु ।।७३ पाउ बुज्मिउ पिकल-परथारु । णउ मम्मह-दण्डि-अलवार १०॥ बसाउ तो वि णड परिहरमि । परि रहाबद्ध कम्बु कामि ||२|| सामण्ण मास छुडु सावदउ। छुद्ध आगम-जुत्ति का वि घडउ ।॥१०॥ शुद्ध होन्तु सुहाखिय-वयणाई। गामिल्ल-भास-परिहरणाई ॥११॥ प्रहु सज्जपा-कोयहाँ किउ विणउ ! अं अबुहु पदरिसिड अषपणड' ||१२|| अइ एम विरूसह को वि खलु । तहों हत्थुरथरिकर लेउ छलु ॥१३॥ घसा पिसुणे किं नमरियण किं छग-चन्दु महागण जसु को वि ण हच्चद्द । कम्पन्तु वि मुच्चइ ॥१४॥ [४] अबहथेवि खस्यणु णिश्व प्रेसु। पहिलउ णिरु वाणमि मगहदेसु ॥३॥ जाहिं पक-कलमें कमसिणि शिसण्ण । भलहन्त सरणि थेर व विसण्ण ॥२॥ जाहिं सुय-पन्तिउ सुपरिट्टियाउ। पर वसिरि-मरगय-कण्ठियाउ ।।३।। जहिं उग्छु-पण पवणाहयाई। कम्पन्ति व पोलण-भय-गया ॥४॥ अहिं गन्दणवणई मणोहराई। णच्चन्ति के चल-पल्लव-कराई ॥५॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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