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________________ एगुणवीसमो संघि भयंकर शब्दोंसे रोती हुई, साँपोंकी फूत्कारसे फुफकारती हुई, बन्दरोंकी बुक्कारसे घिघियाती हुई-सी ! बड़ी कठिनाईसे वह रात बीती । और पूर्व दिशामें सूर्य हसा । जाती हुई वह किसी तरह अपने पिताके नगर पहुँची । प्रतिहारने आगे जाकर कहा, "हे परमेश्वर ! मृगनयनी, सुन्दरमुखी अंजना आयी है।" यह सुनकर राजाको सन्तोष हुआ! ( उसने कहा ) 'शीघ्र नगरमें बाजारी शांभा कराओ, मणिस्वर्ण के वन्दनवार सजाओ, सुन्दर वेष और प्रसाधन कर लिये जाय ।।१-२| धत्ता-सभी मत्तगज्ञ सजा दिये जायें, प्रवर अश्वोंको पर्याणसे अलंकृत कर दिया जाये, सामने जाती हुई समस्त भटसेना जयमंगल तूर्य बजाय" ॥१०॥ [४] यह कहकर बधाई देनेवाले राजाने पूछा-"कितने घोड़े. कितने रथवर और साथ कौन आया है ?" तब अतुलबल प्रतिहारने उत्तर दिया, "न तो कोई सहायक है, और न कोई सेना है ? अंजना वसन्तसेनाके साथ आयी है, मुझसे केवल इतना कहा गया है, सिर्फ आँसुओंके जलसे उसके स्तन गीले हो रहे हैं, वह गर्भवती और दुःखी दिखाई देती हैं।" यह सुनकर राजा नीचा मुंह करके रह गया, मानो किसीने उसके सिरपर वा मारा हो । वह बोला, "दुष्ट दुःशील उसे प्रवेश मत दो, बिना किसी देरके नगरसे बाहर निकाल दो।" इसपर विचार कर आनन्द मन्त्री कहता है, “बिना परीक्षा किये कोई काम नहीं करना चाहिए, सास बहुत बुरी होती हैं, वे महासत्तियोंको भी दोष लगा देती हैं ॥२-८॥ घत्ता-जिस प्रकार सुकविकी कथाके लिए दुष्टकी मति, और जिस प्रकार कमलिनीके लिए हिमघन, उसी प्रकार अपनी बहुओंके लिए दुष्ट साँसें स्वभावसे शत्रु होती हैं" ॥९॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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