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पउमचरित कस्थ इ छत्तई हाई विसालाई णं जम-भोयणे दिण्णाई थालई ॥४॥ कस्य इ सुघड-सिराई पलोइँ । गाइँ अ-णालई णव-कन्दोई ।।५।। कस्थ इ रहयकई विच्छिणगई। कलि-कालही भासण व दिपण॥६॥ करथ नि भइद्दों सियङ्गण किय । 'हियवउ णाहिं' मणेवि उकिय ॥॥ करथ वि गिद्ध कन्धे परिट्रिक । अहिणव-सिरु सुहड्ड समुहिउ ॥८॥ काय ६ गिद्ध मणुसु ण सद्धट । वाणे हि धनुहि मेउ पा कदङ ॥९॥
घत्ता कस्थ छ णर-रुण्ड हि कर-कम-तुण्डे हि समर-वसुन्धर भीसणिय । बहु-खण्ड-पयारे हि णं सुआरे हि रक्ष्य रसोइ जमही तणिय ॥१०॥
[१५] सहि तेहएँ महाहवे किय-महोच्छषेहि ।
कोचिड एक मेनु लहेस-वापवेहि ॥१॥ 'उर उरै सकसक परिसकहि। जिह शिट्टविउ माकि सिह थकहि ॥२॥ हउँ सो राषष्णु भुवण-मयरु। सुरवर-कुल-कियन्तु रणे दुरु' ॥३॥ त णिसुणेषि पलिउ बाखण्डलु। पच्छायन्तु सर हि गह-मण्डलु ॥४॥ दतमुही वि उत्थरिउ स-मकरु। किउ सर-जालु सरेंहि सय-सकरु ॥५॥ तो एस्थन्सर इय-परिवर्खे। सस् अग्गेउ मुक सहसखें ॥६॥ घाइड धगधगन्तु धूमम्सउ । चिन्धहि छत्त-धारे हि लग्गन्त ॥७॥ रावण-बलु णासंघिय-जीविउ । णासइ जाला-माकालीविउ ॥४॥
घत्ता उपणियर-पहाणे वारुण-बाण सरवरमिा उल्हावियउ । मसि-वण्णुपरस्तद धूमल-गत्तउ पिसुण जेम वोलावियउ ॥९॥