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२८.
पङमचरित
पत्ता करि-कुम्म-विकत्तणु गोलिय-तणु को रण जासु समाषधिउ । सो तासु समच्छरु तोसिय-अच्छरु गिरिहं दग्गि व अम्मिसिद्ध ॥१०॥
को वि किवाण-पाणिए सुरवह णिएवि ।
___ण मुबह मण्डलग्गु पहरं समश्लिपवि ॥॥ को वि णीसरन्तन्त-घुटमळो। ममइ मत-दस्थि व स-सङ्खली ॥२॥ को वि कुम्भि-कुम्भयल-दारणो। मोसिनोह-उजलिय-पहरणो ॥३॥ को वि दन्त-मुसलुक्खयाउहो । घाई मत्त-माया-सम्मुद्दो ॥॥ को वि खुडिय-सीसो धणुकरो। पल धाइ विन्धइ स मच्छरो ॥५॥ को वि वाण-विणिभिण्ण-वच्छाओ। वाहिरन्तरवरिय-पिच्छमो ॥ लोणियारणो सहह णस्वरों। इस-कमल-पुओष स-भमरो || को वि एक-चलणे तुरङ्गमे। हरि व विस्थिो ण मरिए कमे |६|| को चि सिरउडे करें विकायले। जुशा-भिक्ष मागे पर-पके ॥५॥
धत्ता मधु को वि परिस्छिरु णित्रष्ट्रिय-सिरु सोणिय-धारुजछलिय-तणु । पक्षिजह दारुणु सिन्दूरारुणु फग्गुणे णाई सहसकिरण ॥१०॥
[३] करथ इ मस-कुजारा जीधिएण चत्ता ।
कसण-महाधण म्ब दोसन्ति धरणि-पत्ता ॥१॥ कत्य ह स-विसाणह कुम्भयक है। णं रणबहु-उपखलर स-मुसलर ॥३॥ कस्य इहय करवाकहि खण्टिय । अन्त-सलत खकम्त पहिग्गिय ॥६॥