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पउमचरित
विणिय-पहरे हि रक्षित सरीरु उपवि जाम
सपणाहु छिपणु तीसहि सरहि ॥ कह कह वि णाहिकप्परिउ वीरु॥४॥ किर धरइ पुरन्दरु पत्तु ताम ॥९॥
पत्ता उग्गामिय-पहरण चोइय-वारण अन्तर यिउ भमराहियाइ । अरें अरिचर-मण राषण-गन्दण उचरि वलि चारहदि अइ ॥ol
खतु मुएवि सम्वेहि मिरि-भासुरेहि ।
काविहाँ पान्दमी यदिभा सुराहे ॥ पेदिउ प भणन्तहि रावणि। तो वि ण गणा सुहट चूणामणि ॥२॥ रोगह बना भाइ भम्मि । रिउ पपणास-सहि दलषय ॥३॥ सन्दण सन्दणेण संचूरइ । गयषर गयवरेण मुसुमूरह ॥४॥ सुरउ सुरगामेण विणिवायइ । णरवर परवर-धाएँ घायई H५| जाम वियम्भह सम्बाया । ताष सु-सारहि सम्भाइ-गामें ॥६॥ पभणइ 'रावण किं णिचिन्तन। मल्लवन्त-णम्दणु अरचन्तड 404 अपणु वि रावणि कइड अख। धेटिव सुस्वर-वलेण समसें ॥४॥ दुखउ जइ वि महाहवें साइ। एक्कु भणेय जिणधि कि सकह ॥९॥
घत्ता ते वयणे राबणु जण-जूरावणु चदिउ महारह खम्ग-करु । पक्खिला देवहि बहु-अवळे हि णाई किंयन्तु जगन्सया ।।१०॥
[..] दूरधेण मिसियरिन्देष्ण सुरवरिन्दी। सौहणं विरुदघेणं जोइभी गइन्दो ॥