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________________ सोलहमो संधि [६] तब पाराशर कहता है, "दो मन्त्री होनार र है। एक मन्त्रीसे राज्यकार्य नहीं होता।” नारदने कहा-"दो भी नहीं होने चाहिए । एक दूसरेसे मिलकर खोटे सलाह दे सकते हैं।" तब कौटिल्यने कहा, "इसमें क्या सन्देह है, तीन या चार मन्त्री ही सुन्दर हैं।" मनु कहते हैं, "बारह मन्त्रियोंकी बुद्धि भारी होती है, एक-दो या तीन मन्त्रियोंसे कार्य-सिद्धि नहीं होती।" यह सुनकर बृहस्पति कहता है, "आते सुन्दर है यदि सोलह मन्त्री हो तो। भृगुनन्दन कहता है, “बीस होनेपर मन्त्र बिना कष्टके विवेकपूर्ण होता है ।" यह सुनकर इन्द्र कहता है, "एक हजार मन्त्रियोंके बिना कैसा मन्त्र ? एकसे दूसरेको बुद्धि होती है और बिना किसी कष्टके कार्यकी सिद्धि हो जाती है" ||१-८|| ___ पत्ता तब सबने इन्द्रका जयकार किया और कहा, “यदि हमारा मन्त्र माना जाये तो हे इन्द्र, दशाननके साथ सन्धि कर लेना सुन्दर है" ॥९|| • [७] "पण्डित और अर्थशास्त्र यही कहते हैं कि हे देव, उत्तम सन्धि करना कठिन है। एक तो तुमने मालिका सिर काटकर फेंक दिया, दूसरे यदि रावण तुम्हारा मित्र बनता है तो इसमें क्या नुकसान हँ ? मयूर साँप खाता है, परन्तु वाणी सुन्दर बोलता है। यदि साम, दाम, दण्ड और भेदसे सिद्धि होती है तो दण्डका प्रयोग करनेसे कौन-सी वृद्धि हो जायेगी ? बालीके युद्धकी याद कर सनीय और चन्द्रोदर दोनों क्रुद्ध हैं । नल और नील, वे भी हृदयसे अप्रसन्न हैं। सुना जाता है कि वे धनके अत्यन्त लोभी हैं। खरदुषण भी अपने प्राणोंसे डरे हुए हैं। वे जिस प्रकार चन्द्रनत्राको ले गये थे। माहेश्वरपुरपति और राजा मरुको अपमानित कर महागजको वश में किया ॥१-८॥ धत्ता-इन उपायोंसे राजाका भेदन करना चाहिए। यदि चित्रांग दूत दशाननके घर जाये तो यह सुन्दर होगा" !RIL १७
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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