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________________ वह गान प्रारम्भ करता है, वैसे ही यन्त्रोंसे पानी छोड़ दिया जाता है, वह पानी ऐसे पहुँचा जैसे परस्त्री संकेतस्थानपर पहुँच जाती है, या जैसे विदग्ध भोगकर उसे छोड़ देते हैं। वह पानी दोनों किनारोको ठेलता हुआ जिनवरकी पूजाको बहाता हुआ दौड़ा। रावण हड़बढ़ाकर और जिनप्रतिमाको लेकर कठिनाईसे बाहर निकला ।।१-८॥ __घत्ता-उसने लोगोंसे कहा, "खोजो उसे जिसने यह दुष्टता की है, बहुत कहने से क्या, आज मैं निश्चित रूपसे उसे यमका शासन दिखाऊँगा" ॥९॥ [१०] इसके अनन्तर आदेश पाते ही मनसे भी अधिक गतिशील अनेक लोग खोज करने गये। रावण नर्मदाको बहते हुए देखा, जैसे वह मृतमधुकरोंके दुःखसे (धीरे-धीरे) जा रही हो, चन्दनके रससे अत्यन्त पंकिल, जलकी ऋद्धिसे यौवनवती, मन्द प्रवाहसे विथन्ध, दिव्य वस्त्रोंको धारण करती-सी, वीणा और अहोरण ( दुपट्टा ) से अपनेको छिपाती-सी, व्यालोंकी नीदसे सोती हुई, मल्लिकाके समान दाँतोंसे हँसती हुई, नील कमलके समान नेत्रोंसे देखती हुई वकुल (1), सुराकी गन्धसे मतवाली केतकीके हाथोंसे नाचती हुई, मधुकरी और मधुकरके स्वरसे गाती हुई, निर्झररूपी मृदंगोंको बजाती हुई ॥१-८॥ ___घत्ता-स्त्रीका रमण नहीं करनेवाले निष्काम परम जिनेन्द्रसे रूटकर ही ( उनकी) पूजाका अपहरण कर, उपहार लेकर मानो वह समुद्र के पास गयी ॥२॥ [११] उस अवसर जो भी अनुचर दौड़े, वे खबर लेकर वापस आ गये। सुनते हुए स्कन्धावारसे उन्होंने कहा, "लो, संसारका सार इतना ही है, माहेश्वरका अधिपति सहस्रकिरण नामका नरेश्वर है। उसने जो जलक्रीड़ा की है वैसी क्रीड़ा देवताओंको भी ज्ञात नहीं सुना जाता है कोई सुन्दर
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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