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________________ २१८ पउमचरिउ म कवि किर गायत् जा!ि जति लु मेलिन ताहि॥1॥ पर-कलत्तु संकेयहाँ कुषउ । णाई वियहिं माणधि मुकउ ॥६॥ भारउ उड्य-नई पेल्लन्तड। निणवर-पवर-पुजा लन्तउ ॥ ॥ दहमुड पटिम रूवि बिहडफड । कह वि कह धिणीसरिउ वियावह घत्ता भणइ गरेसहों तुरिज गवेसहों किउ जेग एउ पिसुणतणु । किं बहु-बुसेण तासु णिरुत्तेण दक्षमि अनु जम-सासणु' ॥९॥ [१०] को एस्धन्तर लडाएमा । गय मण-गमणाणेय गवेसा ॥१॥ राषणेण सरि दिव वहन्ती। मुय-महुयर-दुक्षेण व जन्ती(?)॥२॥ पन्दण-सेंग व बाल-विलिप्ती । जल-रिद्धि णं जोवणासी ॥३॥ वापर-बाहेण व वीसथी। जच्च-पहवरधर व पियस्थी ॥धा होणाहीरणई व पंगती। वालाहिय-णियाए व सुत्सी ॥५॥ पल्लिभ-दन्त हि व विहसन्ती। णीलुप्पल-णय ऎहिं व गिएन्ती ॥५॥ उल-सुरा-गन्धेण व मत्ती । केयह ह व णपन्ती ११७॥ हिरि-महुर-सरु व गायन्ती। उमर-मुरवाई व वायन्ती ८॥ अरमियरामहो णिक णिकामहों आरूमेंषि परम-जिणिन्दहाँ । पुन इरेपिणु पाहु लेपिणु गय णावइ पासु समुहौं ॥५॥ [111 हिं भवसर जे किलर शइय। ते पडिवत्त लएपिपशु आइय ||१॥ हिय मुणन्तहाँ खभावारहों। 'लह एप्स सारु संसारहों ॥२१॥ सरवह णर-परमेसह । सहसकिरणु णामण गरेसरु ॥३॥ | जल-कोल तेण उपाय ! सा श्रमरहि मि रमवि ॥ जाग्र॥४॥ सम्बई कामु को पि फिर सुन्दर । सुरवा मरहु सयर चक्केसह ॥५॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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