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पउमचरिड
घसा सलील-तरन्तहु उम्मीलन्तहुँ मुह-कमल हुँ केह पधाइय । भाय सरस किप (?) सामरसह परवदह भन्ति उप्पाइय ॥९॥
अषरोप्पक जल-कोल करतहुँ। धण-पापालि-पहर मेल्लन्तहुँ ॥१॥ कहि सि चन्द-कुन्दु जल-तारं हि । धवलिउ जलु सुहन्त हि हारहि ॥ कहि मि रसिङ णेउर हि रसन्त हि । कहि मि फुरिंड कुण्डले हि फुरन्ते हि ।। कहि मि सरस-तम्बोलारसउ। कहि मि वउल-कायम्बरि-मत्तड ॥४॥ कहि मि फलिह कप्पर हि वासिङ । कहि मि सुरहि मिगमय-वामीसिउ । कहि मि विविह-मणि-रयन लियाउ । कहि मि धोम-कजल-संवलिया॥ कहि मि पहल-कुकम-
पिरियड । कहि मि मलय-चन्दण-रस-भरियउ ॥ कहि मि जक्खकदमा करम्विउ । कहि भि भमर-रिन्छोलिहि चुम्विाजा
पत्ता विद्दुम-मरणय- इन्दणील- सय- चामियर-हार-संवाए हि । बहु-वण्णुजलु गाव णहयलु सुरवणु-धण-विज्ज-वलायहि ॥५॥
[ ७ ] का घि करन्ति केलि सहुँ राएं। पहण कोमल-कुषालय-धाएं ॥१॥ का विमुख दिप सुविसाल' । का वि णवल मल्लिय-मालएँ ॥२॥ का वि सुयन्धेहि पाइलि-दुले हि । का वि सु-पूय फलं हि वउल्ले हि ॥३॥ का वि जुण्णवणे हि पणिऍहि । का वि स्यण-मणि-अवलम्वणिएँहि ॥ का वि विलेखणेहि उव्यरियहि। का वि सुरहि-दवणा-मारियहि ॥५॥ कवि गुज्छ जले अधुम्मिलुङ । णं मयरहर-सिहरु सोहिलउ |