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________________ २२० पउमचरित कुसुमा-मम्जरि-धय साहार हिं। दवणा-गण्ठिवाल केयारहि ॥५॥ वाणर-मालिन साहा-वन्देहि। महुभर मत्तयाल(?)मपरन्दहि ॥६॥ मा ताल कल्लोलावा हिं। भुमा अहिणव-फल-मणासें हि ॥७॥ एम पद विरहि विद्धन्तउ। गयवह-धम्म हि अन्दोलनमा ||८॥ वत्ता पेक्खें वि एन्तहों रिद्धि वसन्तहों महु-इकनु-सुरासष मन्ती। गम्भयन्वाली भुम्भल-मोली गं भमद सलोणहाँ रत्ती ॥९॥ [1] णम्मयाएँ मयरहरहों जन्तिएँ। णाइँ पसाहणु लइउ तुरन्ति ॥३॥ घवघवन्ति जे जल-पब्भारा । ते जि णाई णेउर-मक्कारा |२|| पुलिणई जाई वे वि सरलाय है। ताई में उड्ढणाइँ णं जायई ॥३॥ जं जल खलाइ धलइ उल्लोलह। रसणा-दामु तं जिणं धोलह ॥॥ जे भावत्त समुट्ठिय चना । ते जि प्याई तणु-तिवलि-तरका ||५॥ जे जल-दस्थि-कुम्म सोहिला। सेलि पाई थण अधुम्मिल्ला ॥३॥ जो हिण्डीर-णियह अन्दोलइ। णावह सो जें हारु रसोलह ॥७॥ ज जलयर-रण-रनिउ पाणि। संजि णाई तम्बोल समाणिउ ॥ मत्त-हस्थि-मय-महलिउ जं जलु। तं जि णाई क्रिउ अश्विहि कमलु ॥९ जाउ सरशिणि भवर-ओह। ताद जि महाराज णं भउहउ ॥३०॥ जाउ समर-पन्तित अहलीणउ। केसावलिउ ताल णं दिण्णा ॥१॥ घत्ता मज्ों जन्तिएँ मुहु दरसन्ति माहेसर-लक-पईचहुँ । मोहुप्पाइउ णं जरु लाइड तहुँ सहसकिरण-दहगीवहुँ ।।१२।।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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