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________________ पउमचरिउ हो सकती है, जैसे पाहिलका 'पउमसिरी चरिउ' । कहनेका अभिप्राय यह कि अपभ्रंश कवियोंके वे चरितकाव्य और कथाकाव्योंमें विशेष अन्तर नहीं किया । ये कवि कभी अपने काव्यको आस्थानककाव्य भी कहते है, अभिप्राय वही है । जहाँ तक 'प्रेमतत्त्व' की प्रचुरताका सम्बन्ध है, यह चरितकायोंमें भरपूर है, परन्तु वे विशुद्ध प्रेमकाव्य नहीं है। कुछ विश्वविद्यालयोंके हिन्दी विभागोंके अन्तर्गत अपभ्रंश चरितकाव्यों का प्रभाव हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्योंपर खोजा गया है जो सचमुच विचारणीय है, क्योंकि प्रेमकाव्य और प्रेमाख्यानक काव्यों में मौलिक अन्तर है । प्रेमकाव्य एक प्रकारसे श्रृंगार काव्य हूँ जबकि प्रेमाख्यानक काव्य ऐसा लौकिक प्रेमाख्यान है जिसके द्वारा कवि लौकिक प्रेमके द्वारा अलोकिक प्रेमका वर्णन करता है । हिन्दी सूफी कवियोंमें रूढ़ प्रेमाख्यानक कायोंपर अपभ्रं चरितकाव्यों का प्रभाव खोजना बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल है ? लेकिन हिन्दी में अपभ्रंश सम्बन्धी खोज, अधिकतर इसी प्रकार की ऐतिहासिक भूलोंकी निष्पति है, जिसपर गम्भीरता से ध्यान देनेकी आवश्यकता है । युगीन परिस्थितियाँ २४ स्वयम्भूका समय स्वदेशी सामन्तवाद की स्थापनाका समय है, ७११ ईसवी में मुहम्मद बिन कासिमका सिन्धपर सफल आक्रमण हो चुका था, और उनके ढाई साल बाद लगभग मुहम्मद गोरी की अन्तिम जीतके साथ गंगाघाटीसे हिन्दू सत्ता समाप्त हो चुकी थी। लेकिन पूरे अपभ्रंश साहित्य में इन महत्वपूर्ण घटनाओंका आभास तक नहीं है। समाज और धर्मके केन्द्र में राज्य था । शक्ति और सत्ता पुण्यका फल था । सामाजिक विषमताओं परिणतिकी व्याख्या पुण्यपादके द्वारा की जाती थी । 'कन्या' का स्थान समाज में निम्न माना जाता था । वह दूसरेके घरकी शोभा बढ़ानेवाली थी। स्वयम्भूके राम भी आदर्श है-"जो भी राजा हुआ हैं या होगा, उसे दुनियाके प्रति कठोर नहीं होना चाहिए, न्याय से प्रजाका पालन करते हुए यह देवताओं, ब्राह्मणों और श्रमणों को स्वयम्भूके समय विन्ध्याटवी में भीलोंको मजबूत पीड़ा न दे ।" स्वयंवरको स्तियाँ थीं।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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