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________________ ०५ तेरहमो संघि कौन निकलना चाहता है ? जलती हुई आगकी ज्वालामें किसने प्रवेश किया है ? यमको पारों के बीच कोल बैठा है। गीच ने कहा, "देवदेव, जिस प्रकार साँपोंसे सहित चन्दन वृक्ष होता है, उसी प्रकार लम्बी-लम्बी स्थूल बाहुवाले महामुनि कैलास पर्वतके ऊपर स्थित है, मेरुके समान अकम्प और समुद्र की तरह अक्षुब्ध, महीतलके समान बहुक्षम, त्यक्तमोह (मोह छोड़ देनेवाले) और मध्याहके सूर्यको तरह उन तेजवाले। उनकी शक्तिसे विमानका तेज मक गया है। हे देव, विमान शीघ्र हटा लीजिए जिससे हृदय की तरह फूट न जाये ॥१-९।। पत्ता-अपने ससुरके शब्द सुनकर रावण नीचा मुख करके रह गया। मानो गगनांगनारूपी लक्ष्मीका यौवनभार ही गल गया हो। ॥१०|| । [३] उसने ( उतरकर ) वह कैलास गिरि देखा, जिसके स्कन्ध गरजते हुए मत्तगजोंके ऊँचे सिरोंसे घर्षित हैं, जो प्रचुर सूर्यकान्त मणियोंकी ज्वालासे प्रदीप्त और चन्द्रकान्त मणियोंकी धारासे रचित है, जो मरकत मणियोंसे मयरोंका भ्रम उत्पन्न करता है, जिसने नीलमहामणियों की प्रभासे दिशाओंको अन्ध फारमय कर दिया है, जो श्रेष्ठ पझराग मणियोंके किरणसमूहसे लाल है, जिसके तट, हाथियोंके मदजलकी नदियोंसे प्रमालित हैं, जिसके शिखर वृक्षोंसे गिरे पुष्पोंसे व्या हैं, जिसमें मकरन्दोंकी सुरा पीकर भ्रमर मतवाले हो रहे हैं, साँपोंसे दंशित महागज जिसमें साँसें छोड़ रहे हैं, और सासोंसे निकले हुए मोतियोसे जिसकी दिशाएँ धवलित हो रही हैं। एक और मुनिवरको उसने वहाँ देखा । उसने उन्हें लटकारा, "लो मित्र, मुनि होकर भी तुम कषायपूर्वक क्रोधाग्निकी ज्वालामें जल रहे हो, आज भी मेरे साथ युद्ध करने की इच्छा रखते हो, नहीं तो, जब मुनि थे चो विमान क्यों रोका ?" ॥१-२॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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