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पडमचरित
धत्ता श्रवराह-सएहि मि वइसवणु तुम्हहि समउ ण जुज्मइ । असन्तु नि सवर-पुलिन्दएँहि विच जेमण विरुजमाह ||२||
[-] पर आएं पक्खमि विपडिषण्णु । जे पाहि णिवारहौं कुम्भयपणु ॥१॥ एयहीं पासिउ मुम्हह विणासु । एयहाँ पासिउ भागमणु तासु ॥२॥ एयहाँ शासिउ पायाल-बल पइसेवउ पुणु वि करेवि सङ्क ॥३॥ मालि वि जगढन्तउ भासि एम । मुउ परवि पई पया जेम ॥४॥ तइगहुँ तुम्हहुँ वित्तन्तु जो उज। एवहिं दीसह पडिवउ वि सोज ।।१।। वरि हु जे समप्पिड कुक-कयन्तु । अच्छउ तहाँ घर णियलाई वहन्तु ॥६॥
सुचि ससिंगलियर। कहा गड बण' कही तणउ इन्दु' ।। अवलोइउ भोसणु चन्दहासु। पडिवक्स-पक्ष-खय-काम-वासु ।। ।। पहँ पढमु कपिपणु वलि-विहाणु । पुणु पच्छ धणयहाँ मलमि माणु'॥९॥ सिरु णावेवि वुमु विहीणेण । 'विणिवाइएण दूर्वेण पण ॥१॥
घत्ता परिममइ अयसु पर-मण्डल हि तुम्हहँ प्रउ ण छन्जाइ । झुज्मन्नउ हरिण-उलेहि सहे किं पत्रमुहु ण लमह' ॥११॥
[ २ ] गोसारित दूउ पणटु केम । केसरि-कम-चुक्कु कुरमु जेम ॥१॥ एस वि दसाणणु विष्फुरन्तु । सपणहें वि विणिग्गर जिह कयन्तु।।२।। णीसरिउ बिहोसणु भाणुकण। रयणासउ मह मारिच्चु अपणु ॥३॥ णीसरित सहोवर मलवन्तु । इन्दइ घणवाहणु सिसु वि होन्तु॥४॥ हउ तूरु पयाणड दिण्णु जाम। दूएप वि धणयहाँ कहिउ ताम।।५।।