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________________ दसमी संधि १६५ धत्ता-कामदेवके तीरोंसे जर्जर सभी अपनी मर्यादा तोड़ती हुई बोली, "तुम्हें छोड़कर दूसरा हमारा पति नहीं है, वियाह कर लीजिए, हमने स्वयं वरण कर लिया है" ||८| [६] इतने में जानेके लिए व्याकुल सभी आरक्षक भटोंने जाकर देववर सुन्दरको बताया, "सब कन्याएँ एक आदमीके हाथ लग गयी है, उसने भी उन्हें चाहा है, प्रत्युत अच्छी तरह चाहा है।" यह सुनकर सुरसुन्दर विरुद्ध हो जठा, वह क्रुद्ध कृतान्त की भाँति दौड़ा, एक और कनक राजा और बुध के साथ। अप्रमाण साधनके साथ उसे देखकर कन्याएँ बोली, "अब कोई शरण नहीं है, तुम्हारी हम लोगोंके कारण मौत आ पहुँची है।" इपर राना ,स' को भोजा, "दन आक्रमण करनेवाले सियारोंसे क्या ? ॥१-७) घसा-जसने अवसर्पिणी विद्यासे कहकर, विषधर पाशोंसे उन्हें बैंधवा लिया, उसी प्रकार जिस प्रकार भवसंचित हजारों दुष्कृत कोसे दूरभव्य बाँध लिये जाते हैं ॥८॥ [७] उन्हें छोड़कर सत्कार कर अपने अधीन बनाकर उसने छह हजार कन्याओंसे विवाह कर लिया। रावण अपने घर गया। प्रवेश करते हुए कृतार्थ उसे समस्त परिजनोंने देखा । बहुत समयके अनन्तर, मन्दोदरीसे दो भाई इन्द्रजीत और मेघवाहन उत्पन्न हुए। यहाँ कुम्भकर्ण ने भी कुम्भपुरमें प्रवीण श्री सम्पदासे विवाह किया। रात-दिन वह लंकापुर प्रदेशके वैश्नवणवाले देशमें झगड़ा करने लगा | प्रजा विलाप करती हुई गयी। राजा क्रुद्ध हो उठा । उसने बचनालंकार दूत भेजा। वह जाकर दशाननके दरबार में प्रविष्ट हुआ । उसने भी उसके लिए थोड़ासा अभ्युत्थान किया । दूत बोला, "सुमालि राजन्, कन्या दो, और अपने पोते इस कुम्भकर्णको मना करो ।।१-८॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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