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________________ १२८ पउमरित णं पोल-विलासिणि कामुएहि । णं सयबप्तिणि फुल्लन्धुपाहि ॥५।। किउ कल यल रहसाऊरिणहि । पडिपहराई तुरई तरिहि ।।६।। चिहि सक्ष तालिग हि ताल । चल-पासिउ उट्टिन मड-धमाल ॥७॥ घाइउ ल कादिङ विष्फुरन्तु । रणे पाराउटर पल करन्तु |८॥ पत्ता गंमत-गइन्दु पशागणहाँ समावदित सरहमु णिग्घाउ गम्पिणु मालिइ अभिडिउ ॥९॥ [१४] पहरन्ति पशेप्पर तस्वरहि । पुणु पाहाणहि पुणु गिरिवरहि ॥१॥ पुणु विजारूवहि भीयागेहि। अहि-गरुड-कुम्भि पञ्चाणणेहि ॥२॥ पुणु णाराएहि भयङ्करहि । मुबइन्दायाम-पईहरहि ॥३॥ हिन्दन्ति महारह-छस-धयई। वहयागरण व वाया प-पयई।1।। प्रत्भन्सवाहिय-यन्दगण । दणुवइ-इन्दामिह पान्दणेण ।।।। सयचारत परिप्रजेवि गयणे। हड खरगे छुद्ध कियन्त-वयणें ॥६॥ णिग्घाउ पडिउ जिग्घाउ जेम | महियले णर गहें परितु? देव ॥७॥ चत्तारि वि धुव-परिहव-कलङ्क । जय-जय-सदेण पइट्ट लङ्क ॥ll सन्ति सन्तिहरे सुविलासिणि जेम गम्पिशु वन्दण-हसि किय । स ई भुञ्जन्त थिय ।।१।।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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