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पउमचरित तं सुणे वि जनरें बुत्तु एम | थिय दादुप्पाडिय सयु जेम || कहि जाहुँ मुएँ वि पायाकला। चउपासिउ वहरिहुँ तणिय सा ।। धपत्राहण-पमुह णिरन्तराई। एत्तिय ई जाम रजन्तराई ॥७॥ अणुहूय सङ्ग कामिणि व पचर। महु तणएँ सीसें अवहरिय प्रवर ॥८॥
पत्ता ते व्यणु सुणेवि मालि पलित्तु दवन्गि जिह । 'उद्धद्धएँ रजें णिविस वि जिज्बइ ताय किंह ॥५॥
[२] महं कहिय भडारा पर्ने जि णित्ति । तिह जीवहि जिद परिममइ कित्ति ॥१॥ तिह इस जिह ण हसिमा जण । तिह भुज जिह " मुञ्चहि धणेण ॥२॥ तिह जुयु जिह णिच्युइ जणइ अङ्ग। तिह सजु जिह पुणु वि ण होइ सा॥३॥ विह च जिह बुच्चा साहु लाहु । तिह संचरु जिह सयणई ण डाहु ॥२॥ तिह सुगु जिह णिवसहि गुरुहुँ पासें। सिंह मरु जिह णावहि गम्भवासें ॥५॥ तिह तद करें जिह परितवद गनु । तिह रज्जु पा. जिह यह सत्तु ॥५॥ कि जीएँ रिउ शासकिएण। किं पुरसे माण-कलडिएण Ht किं दुचे दाण-विवजिएण। किं पुत्ते मइलाइ बंसु जेण hell
घता जह कल्लएँ ताय वाणरि ण पसरभि । सो णियय-जणेरि इम्दाणी करपलें परमि ॥९॥
[ ] गय स्यणि पयाणउ परएँ दिण्णु। हर तुरु रसायलु णाई मिण्णु ॥३॥ संचल्लिउ साइणु पिरयसेसु। भारत के वि पर गथषरेसु ॥२॥ तुरएसु के वि के वि सन्दणेसु । सिबिएसु के वि पवागणेसु ॥३॥ परिवढिय सा-पयरि तेहिं । जं महिहर-कोटि महा-धणेहि ॥७॥