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________________ सतमो संधि १२५ धरतीपर, क्षण में आकाशमें घूमते हुए । एक क्षणमें विमानमें, एक क्षणमें स्यन्दन में ।।१-८॥ __घता-बड़ी कठिनाईसे अशनिवेगने खड्गसे अन्धकको कण्ठमें आहत कर, उसे उसी पथपर भेज दिया, जिसपर कि विजयसिंह गया था ।।९।। [4] यहाँ भी भिन्दपालसे आहत किष्किन्ध राजा मूच्छित हो गया। उसे पड़ा हुआ देखकर विद्युद्वाहनने छोड़ दिया। उस अवसरपर सुकेश उसके पास पहुँचा और रथवरमें डालकर उसे नृपभवन में ले गया । हवा करने पर उसे होश आया। उठते ही उसने अपने भाईको भूला : किसीने इ.1, "भा कहाँ देव, वह तो सेवासे चूक गया ।" वह फिर किनारेके पेड़की तरह गिर पड़ा। फिरसे हवा की गयी और उसमें चेतना आयी । वह कहने लगा, “हा, तुम्हारे बिना वानरद्वीप सूना हो गया, हे भाई, हे सहोदर, तुम मुझसे बात करो, हा, तुम्हारे बिना यह धरती विधवा हो गयी ॥१-७॥ धत्ता-तब सुकेश कहता है, "हे स्वामी, जब जीनेमें सन्देह हो और सिर पर तलवार लटक रही हो, तब रोनेका यह कौनसा अवसर है ||८|| [२] बिना कामके तुम' शत्रुओंको अपना शरीर दे रहे हो, आओ पाताललोक चलें। जीवित रहनेपर सब काम सिद्ध हो जायेंगे । यहाँ तो न मैं हूँ, न तुम, और न यह राज्य ।" यह सुनकर वानरवंश-शिरोमणि अपनी सेना और परिवारके साथ वहाँसे भाग निकला। उसे भागता हुआ देखकर हर्षितमन विद्युद्वाहनने अपना रथ हाँका । तब अशनिवेगने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "उत्तम पुरुषके लिए यह ठीक नहीं है, भागते, प्रणाम करते, सोते, खाते और पानी पीते हुए शत्रुको मारना ठीक नहीं। जिसने विशालबाहु विजयसिंहको मारा
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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