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पउमचरिउ
महिलखणे गायले भ्रमति । खर्णे सन्दर्णे खर्णे जें बिमाणे धन्ति ॥८
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भायामें विक्खु णि पन्थ तेण
एस विमिन्दिवाण पहउ । अच्छन्त परिचितेंवि भणेण । साई सरें सुकै पासु । परिवाइड वेयण-माउ लद । 'कहिं भन्व' 'पेस-बुकु देव' पुणु पडिवाइड पुणु आउ जीउ हा माय सहोयर देहि वाय ।
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सो
मइ सुकंसु सिरें क्खि खग्र्गे
घत्ता
अन् खभ कण्हें हउ
जें सो चिजयमइन्दु गर ||२९||
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किष्किन्धाराहि मुच्छ गउ || १|| आमेलिङ विजुकवाहणेण || २ || रहबरें छुहेचि डि निय-निवासु ॥३॥ उन्हें पुच्छिउ परम-बन्धु ||४|| णिवडिउ पुणो वि तडि-रुक्खु जेम ||५ हा पढ़ें विणु सुण्णउ पमय-दीड ॥ ६ ॥ हा पइँ विष्णु मेणि विजाय ॥ ७ ॥
घन्ता
संसठ माह जिएवाहों ।
अवसर कंवणु रुपषा ॥ ८ ॥
दिणु कर्जे रिहिं अनु देहि । जीवन्त सिझइ सक्छु कज्जु । से पिसुर्णे विषाणर-स- सारु । णासन्तु लिए वि हरिसिय-मणेण । कर वरि अणिवेषण पुत्तु । णासन्तु यवन्तु सुबन्तु सत्तु । जें विजयसीहु हउ मुय बिसालु
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पापाकल पड्सर एहि ||१|| एत्तिउ णचिहउँ ण वि तुर्हे ण रज्जु ॥ १
सरिस साह स-परिवारु ॥ ३ ॥ रहु बाहिङ विज्जुल वाहणे ||४|| किं उत्तिम पुरिस एड जुत्तु ॥५॥ मुञ्जन्तु ण हम्मद जल पिंयन्तु ॥ ५॥ सो जिउ कियन्त-दन्तन्तरालु ॥७॥