________________
१०
एम चरिख
घत्ता
साइड उ विणु वाणरें हिं तहूँ यिन्त तहि जे थिङ
एक-दिवसें देवागमणु वन्दण-इतिऍ सो वि गड
|
पहु तेहिं समाणु खेड करेषि । गड किवकु महीहरहो (?) सिहरु किट सहसा सम्वु सुचण्णमउ | जहिँ चन्दकन्तिमणि चन्दिय । जहि सूरकन्ति मणि विष्फुरिय । जहिं णोलाउलि-भू- महुहूँ । विमदुवार - रताहर हूँ | उपणु साम कोड्डाण ।
-ु
पड़ वाणर जा ण बुकासे । बिज्जालड सिरिकण्ठ-कुमारो ॥९॥
[ ]
अवरेहिं धरावेषि सहँ घरे दि ॥१॥
उदह-जोयण - एमश्णु णयरु ॥२॥ णामेण विषकुye अष्णमउ ॥ ६ ॥ ससि मणेंचि अ-दियों में यन्दियउ ॥ रवि मणेंवि जलाई मुअन्ति दिया ॥ ५॥ मोतियतोरण- उदन्तुरहूँ ॥ ६ ॥ अवरोप्यरु विहसन्ति व घर ॥७॥ सिरिकण्ठों वज्यकण्डु सणउ ॥ ८ ॥
घत्ता
जिवि जन्तु मन्दीसर - दीवहो । परम-जिणों तइलोक-पई वहाँ ॥ ९॥
[C]
।
स पसाह स-परिवारु सन्धव पटिकूलिज ताम गमणु रहो । महूँ भष्ण भवन्तरे का है किउ वरि घोरचौर-तउ उँ करमि । गड एम भावे पिय-पट्टणहों । संगु जाउ निविसन्तरेण ।
मसुर-महिहरु जाम गर ॥११॥ सिद्धालउ णा कु-मुणिवरहों ॥ २ ॥ जे सुर गय महुजि विमाणु थिउ ॥ ३५ मन्दीर जे पइसरभि' ॥४॥ संसाणु समप्पें वि णन्दणों ॥५॥ जिह बजकण्डु कान्तरेण || 4 ||