SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "ओफ, वह ! यह सन्निधान की जन्म-पत्री का फल है। सन्निधान को भी ज्योतिष का ज्ञान है न?" "देवी की तरह मैं पण्डित नहीं हूँ।" "आपकी पट्टमहादेवी की जन्मपत्री में कुछ दोष नहीं है, यह आपको मालूम नहीं?" __ "ओफ! हमारी जन्मपत्री में वह दोष प्रखर है, इसलिए संयम कम है, यही?" "ऐसी बात नहीं, देव । स्त्री की सहज अभिलाषा सन्तान में परिणति पाती है। अब उस ओर मेरा मन जाता ही नहीं।" । "तो तुम्हारा यह मन्तव्य है कि हमारा मन सदा उसी ओर रहता है।" "आपको तृप्त करने के लिए आपकी और रानियाँ हैं।" "जहाँ इच्छा हो, वहीं तप्ति मिलनी चाहिए न?" "दैहिक तृप्ति एक तरह की, मानसिक तृप्ति दूसरी तरह की। भूख लगने पर ही भोजन रुचता है।" "दैहिक तृप्ति के बिना मानसिक तप्ति मिलती है ?" "वह मनोबल से मिलती है। संन्यासी भी हमारी ही तरह के मनुष्य ही तो हैं न? उन्हें इच्छा होती ही नहीं।" "इच्छा होने पर भी शायद वे कहते नहीं।" "ऐसा भी हो सकता है। परन्तु संन्यास के लिए संयम बहुत ही मुख्य है।" "असंयमी संन्यासी लुक-छिपकर अपनी इच्छा पूरी कर लेगा।" "इसी तरह यदि हम संयम को खो देंगे तो गलत मार्ग पर चले जाएंगे।'' "तो यह बात हम पर लागू होगी?" "इस समय बौद्धिक चर्चा हो रही है। सन्निधान को जन्मपत्री में कुज के विषय को लेकर हमने चर्चा आरम्भ की है। यहाँ विचार गलत मार्ग का अनुसरण नहीं, भूख का परिमाण क्या और कितना होता है, यह प्रश्न है।" "तो तुम लोगों को भूख की एक परिमिति है, और हमारी भूख एक ज्यादती है. यही न मतलब?" "हाँ, परन्तु सन्निधान उसका कारण नहीं। आपके ग्रह कारण हैं।" ''दूसरी रानियों की जन्मपत्री को पद्महादेवी ने देखा है।" "जन्मपत्री देखने का मौका ही नहीं आया। सन्निधान ने जो चाहा उसमें हमारी सहमति थी। साथ ही अन्य कारण भी रहे।' "हमें इस चर्चा से कोई प्रयोजन नहीं। जिस उद्देश्य से आये, वह सफल हो जाय, इतना ही हमारे लिए पर्याप्त है।" "सन्निधान अब मुझे परीक्षाधीन क्यों बना रहे हैं? मुझे अपना खतपालन करने पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार ::१|
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy