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________________ का वह खण्डन करती है।" "यहाँ कोई अन्यायपूर्ण सलाह नहीं दी है। अपनी बेटी और दामाद के श्रेय के लिए ही सलाह दी हैं, उसके नाम का उपयोग किया। " " तो अपनी बेटी के श्रेय के लिए ही, आचार्यजी के शिष्य एम्बार आ गये हैं, यह सूचना उन्हें नहीं दो ?" " एक परिचारक के आने की बात कौन-सा महत्त्वपूर्ण विषय है ? न बताएँ तो कोई नुकसान नहीं, इसलिए नहीं बताया । " " आपकी दृष्टि में ऐसा हो सकता है। विजयोत्सव पर अपने शत्रुओं के गुप्तचरों के सहायक बने रहे, सो भी शायद बेटी और दामाद के कल्याण ही के लिए! है न ?" "मुझे इन राजनीतिक बातों की जानकारी नहीं। उनका चेहरा और उनके धर्मसार आदि को देख मैंने सोचा कि वह हमारे धर्मावलम्बी हैं और हमारे हैं। इसलिए ऐसी गलती हो गयी।" तिरुवरंगदास ने कुछ संकोच से कहा । "राजनीतिक प्रज्ञा है या नहीं, यह इसका कारण नहीं। असल में अपने बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बोलने की और मनमानी करने की आदत है आपकी। लोगों को यह बताकर कि आप महाराज के ससुर हैं, डींग भारते चलने की आपकी प्रवृत्ति ही मूल कारण है। मेरी बात कड़वी लगेगी, रानीजी की अभिलाषा कहकर, दण्डनाथ के दिमाग मैं अण्ट-सट बातें भरकर, उनसे पत्र क्यों लिखवाया ? यादवपुरी के समस्त व्यवहार सचिव को मालूम होने चाहिए। रानीजी को भी मालूम होने चाहिए। इन दोनों की जानकारी के बिना, वहाँ पत्र भेज देना आपने उचित माना ? आपके इस तरह के व्यवहार से रानीजी के विषय में गलत धारणा बन सकती है। सन्निधान इस समय राजधानी में उपस्थित नहीं इसलिए उन्हें आपकी या दण्डनाथ की यह हरकत मालूम नहीं। रीतिनीति को छोड़कर व्यवहार करनेवाले राजमहल का विश्वास खो बैठेंगे। एक बार अविश्वास पैदा गया तो फिर विश्वास पैदा करना असम्भव होगा। यह आप जैसे बुजुर्गों को समझना चाहिए। धर्मान्धता कभी लोगों में एकता पैदा नहीं कर सकती। भाषा अधिक व्यापक रूप से यह काम कर सकती है। इसलिए केवल माथे पर के तिलक पर मुग्ध होकर कोई काम न कर बैठिएगा। और उन तिलकधारियों का गुट बनाने की कोशिश मत कीजिएगा। धर्म का दुरभिमान काँटेदार बेल की तरह बहुत जल्दी फैलने लगता है। यदि इस तरह वह फैलने लग जाए तो जहाँ कदम रखें वहीं काँटे लगेंगे फिर कहीं खड़े होने के लिए जगह नहीं रहेगी। अज्ञान से किये गये कार्य क्षम्य हैं, परन्तु उस कार्य को दोहराना अक्षम्य होगा। दण्डनाथजी, इसमें सीधा आपका कोई अपराध नहीं। फिर भी आपको यह बात नागिदेवण्णाजी से करनी चाहिए थी। आप अभी कमउम्र हैं, उत्साही हैं। आपका घराना पांय्सल राजवंश के विश्वस्त घरानों में एक है। उस घराने के गौरव की रक्षा करना आपका धर्म है। आपका भविष्य आपकी निष्ठा पर 80 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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