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________________ अवलम्बित है। डाकरसजी जिस कार्य का निर्वहण करते थे, उनके लिए आपकी छोटी उम्र के बावजूद, राजमहल ने आपको जब भेजा तो आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि कितना विश्वास आप पर रखा है। पोय्सल राजा सभी धर्मों को एक समान गौरव देते हैं। किसी भी धर्म के लिए कोई पक्षपात नहीं, इस बात को सब याद रखें।" कोनेय दण्डनाथ या तिरुवरंगदास किसी ने चूं तक न की। चुपचाप बैठे रहे। "सन्निधान ने बताया कि राजमहल ने हम पर जो विश्वास रखा है, हमें उसके योग्य बनना चाहिए। हमारी जानकारी के बिना यदि राजधानी में पत्र जाएं तो वह हमारी असमर्थता का साक्षी है । इस सन्दर्भ में गलती मुझसे भी हुई है, यह मैं स्वीकार करता हूँ।" सचिव नागिदेवण्णा ने कहा। "राजमहल ने आप पर जो विश्वास रखा वही विश्वास आपने दण्डनाथ पर रखा। अच्छा, अभी कोई ऐसी भयंकर गलती नहीं हुई है। हम यदि सीधे सचिव के पास, वर्तमान स्थिति में असमर्थता सूचित करते हुए पत्र भेज देते तो यहाँ किस-किस के मन में कौन-कौन-से विचार उठते, कौन जाने? इस तरह के व्यवहारों को रोक देने तथा कहीं किसी के मन में किसी तरह की कटुता उत्पन्न न हो, इसी इरादे से हम स्वयं यहाँ आये । रानीजी को भी माम हुआ होगा किन्हें किसा पहारा होगा। आपके नाम का, आपकी जानकारी के बिना उपयोग किया गया है, इस बात का अब प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया न? इसी तरह दूसरों के नामों का भी उपयोग करना असम्भव नहीं। इसलिए जन्न उच्चस्तरीय व्यक्तियों के नामों का उपयोग किया जाए तो उस पर बड़ी सतर्कता से विचार होना चाहिए । एकदम विश्वास कर लें तो हम समस्याओं के जाल में फंस जाएंगे। इसी प्रसंग में मैं एक बात और कहे देती हूँ-बेलापुरी में चेन्नकेशवस्वामी के प्रतिष्ठा-समारम्भ के अवसर पर भगवान् को सन्निधि में संगीतसेवा और नृत्य-सेवा के मौके पर बाधा उपस्थित करनेवाले कोई अन्य लोग नहीं, श्री वैष्णव ही थे। उस समय भी रानीजी का नाम लिया गया था। उस समय की सारी घटनाओं को प्रकट करते तो धर्म के प्रति अश्रद्धा की भावना उत्पन्न हो सकती है, यही सोचकर राजमहल चुप रहा । राजमहल के विरुद्ध लोगों को भड़काने से कोई फल नहीं मिलेगा, यह बात भी श्रीवैष्णवों को समझना चाहिए । पोय्सल राज्य में उन्हें सुखी जीवन व्यतीत करना हो तो उन्हें अन्य धर्मवालों के साथ भ्रातृभाव से व्यवहार करना होगा। कुतन्त्र करके नहीं। सचिव, दण्डनाथ व्यक्तिगत रूप से श्रीवैष्णव के प्रति श्रद्धाभक्ति रखते हैं, यह राजमहल जानता है । इसलिए आचार्यजी के कार्यों में सुविधा हो, यही विचार कर उन्हें यहाँ नियुक्त कर रखा है। आप लोगों के नाम का भी धर्म के बहाने, कुर्मियों के द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। इसलिए आप लोगों को भी सावधान रहना होगा। मत-सहिष्णुता की प्रवृत्ति को बढ़ाना और बढ़ावा देना चाहिए। यदि कहीं कभी ऐसी प्रवृत्ति दिखाई पड़े, धर्म के नाम पर कहीं कोई शिकायत या नबन पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार ::81
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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